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हमारे किसानों को आराम नहीं

Sanam kumari Shivani 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 8894 0 Hindi :: हिंदी

जेठ हो कि हो पुस
हमारे किसान को
आराम नहीं, छुटे
कभी संग बैलों का 
ऐसा कोई धाम नही 

मुख मैं जीभ नहीं
पूजा में शांति नही
जीवन में सुख का नाम नहीं

खाने को कहा सुखी रोटी भी
मिलती दोनो शाम नही
बैलों के ये घर बर्फ
भर न जाने कैसे जीते होंगे

बंधी जीभ आंखे नम
गम खाकर शायद
आंसू पीते होंगे
पर शिशु का क्या
जो सिख न पाया 
अभी आंसू पीना

चूस चूस कर मां का स्तन
भूखा सो जाता हैं
विवश देखती मां आंचल से
नन्हीं जान लिपट सो जाती

कब्र कब्र में अबोध बालक
की भूखी हड्डी होती है
दूध दूध की कदम कदम पर
सारी रात होती हैं।

दूध दूध गंगा तू ही
अपनी पानी का दूध बना दे
इन बच्चों को भी
थोड़ा सा दूध पिला दे।


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