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वो गुमनाम हथेलियां-बदनाम कर गई

Sudha Chaudhary 30 Jun 2023 कविताएँ अन्य 6785 0 Hindi :: हिंदी

वो गुमनाम हथेलियां
बदनाम कर गई।
कहां की सुबह 
कहां की शाम कर गई।
सोचा था,
सितारों में मेरा नाम होगा
तुम्हारी खोज में
जिन्दगी हराम हो गई।
पत्थर के बिछोने पर
सोती रही दिन रात 
जाते, तमाशाइयों के लिए
आम हो गई।
कितना सुकून था
दरवाजे से दूर
दूसरी जिन्दगी में,
पर हंसती हुई पनाहें
बेनाम कर गई।
बेकार थी शाने शौकत खिजां के मौसम सी
तेरी आवारगी में ये ज़िन्दगी सलाम कर गई।
वो गुमनाम हथेलियां बदनाम कर गई।।
कहां की सुबह ,कहां की शाम कर गई।।

सुधा चौधरी
बस्ती

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