Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक #जंगल राज 37044 0 Hindi :: हिंदी
कहीं अश्क कहीं क्रंदन कहीं घर बने श्मशान! राबड़ी के राज में हुआ जंगल राज! कैसी यह हवा चली! कुम्हलाया है हर तरुण-कुचली है हर कली! बिखरें है हर पात टूटी है हर शाख! सहमा - सहमा है चमन सारा! जैसे बेजान हो प्रकृति का नजारा! माली जानकर नादान है जैसे इस रोग से अनजान है! बिन मौसम यह खिजा कैसी! बिहार में चल रही है यह हवा कैसी! हर पल हो रहा आतकं आबाद! नारायण पुर हो या जहानाबाद! सब जगह हो रहा हाहाकार! कहीं अश्क कहीं क्रंदन कहीं घर बने श्मशान! राबड़ी के राज में हुआ जंगल राज! बिहार पतन का विगुल बजा है! सत्ता भवर में बिहार फंसा है! लालू ने चक्रवयु ऐसा रच डाला! चर गया पशुओं का यह चारा! कुर्सी की आढ़ में बैठा यह नाग काला! लालू की विसात का राबडी एक मोहरा है! लालू की एक शैह से हुआ हाहाकार! कहीं अश्क कहीं क्रंदन कहीं घर बने श्मशान! राबड़ी के राज में हुआ जंगल राज! एमएमसी और रणवीर सेना! नररूपी नरभक्षी सेना! लूटा अपनी मां की मांग का गहना! इंसानी खाल में भेडिये छुपे बैठे! बंदूक थाम कर खुद को खुदा समझ बैठे! गागर से सागर खाली नहीं होता! खुद से कभी कोंई खुद आबाद नहीं होता! नफरत की नाव का कोंई किनारा नहीं होता! यह सब जनून में है दिवाने! सत्ता में खुल गये हैं अब मैखाने! कैसा राजनिति का आलम है! आदमी बन गया आदम है! इन आदमखोरों से मचा हाहाकार! कहीं अश्क कहीं क्रंदन कहीं घर बने श्मशान! राबड़ी के राज में हुआ जंगल राज! जहानाबाद का है नजारा! कश्ती डूबी मिला किनारा! आगे था बस एक विराना! अखबारों के ढेर में दफन हो गयी मां की हृदय वेदना! पुत्र ममता के लिये पड़ा सुहाग छोड़ना! पिता खुन के लिये कुर्बान हो गया! जिस्म ए खून का दरिया, बहकर सागर हो गया! इस बहते खून के दरिया को! लालू नहीं अब सुभाष चाहिए! राबड़ी नहीं नरसिंह अवतार चाहिए! बहते अश्कों को जो थाम ले. ऐसा बांध चाहिए! सत्ता का खरीदार नहीं! सत्ता का गुलाम चाहिए! प्रजा के लिये जो मर मिटे ऐसा इंसान चाहिए! तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा! वाला सुभाष चाहिए - सुभाष चाहिए- सुभाष चाहिए! विपिन बंसल