Anjani pandey (sahab) 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक ###पुश का एक दिन ### बच्चो को पढ़ाए 23127 0 Hindi :: हिंदी
पूष का एक दिन (भाग-1) ठंड का दिन था बादल कुछ दिख रहे कुछ छिपे हुए थे खिलखिलाती धूप दिख रही थी । राजू खेत में काम करने गया था घर में उसकी मां, उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। राजू एक ईमानदार किसान था उसने अपनी खेती के लिए कभी भी लेनदारो से ऊंची ब्याज दर पर कर्ज नहीं लिया था। वही सभी कृषक अच्छी खेती और उपज के लिए लाला धनीराम से ऊंची ब्याजदार पर कर्ज लेते थे। ये बात लाला धनीराम को अच्छी नहीं लगती थी।राजू के दोनो बच्चे अब थोड़ा बड़े हो गए थे अब उन्हें पढ़ाना भी था राजू ने अपने बेटे सूरज का नाम प्रतापगढ़ के संगम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल में लिखवा दिया और बेटी थोड़ा छोटी थी तो अपने घर के पास ही उसका दाखिला करवा दिया। अब राजू को और मेहनत करने की जरूरत थी उसके बेटे और बेटी अब पढ़ने लगे थे। पूष का एक दिन(भाग-2) राजू अभी तक हर तूर में सिर्फ दो खेती करता था लेकिन अब बढ़ती जिम्मेदारियों की वजह से एक खेती और करने लगा। राजू बहुत बड़ा आदमी तो था नहीं उसे और खेती के लिए और पैसों की जरूरत पड़ने लगी उसने अपने मित्र अंजनी को बुलाया और कहा राजू- मित्र अब मेरे बच्चे बड़े हो गए है उनको पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहता हू इसलिए अबकी बार एक तूर की खेती और करना चाहता हूं लेकिन सरकार के आदेशों से ये जो आवारा बैल टहल रहे हैं इनकी वजह से खेती नस्ट हो जाती है और लाला धनीराम से मैं उधार नहीं लेना चाहता। अंजनी- मित्र तुम पर बढ़ती जिम्मेदारियों का बोझ मुझे तो चिंता में डाल दिया है मैं तुम्हारे बच्चो को पढ़ाने लिखाने की जिम्मेदारी लेता हूं । पूश का एक दिन(भाग-3) इतना कहकर राजू घर चला आया घर आकर उसने देखा की उसके मां की तबियत बहुत खराब है राजू दौड़ा दौड़ा गया डॉक्टर के पास डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मेरी मां की तबियत बहुत खराब है, डॉक्टर आया अपना आला निकाला नब्ज को चेक किया और कहा की राजू अब तुम्हारी मां ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है इनकी सेवा करो अच्छे से उधर राजू की पत्नी कुछ बुदबुदा रही थी थी राजू की पत्नी(कविता)- मरने दो इस बुढ़िया को दिन भर मेहनत मजदूरी करके कैसे कमा रहे हो अब चलो इनकी दवाई में लगाओ राजू- कविता अपनी जुबान पर लगाम दो! मां है मेरी मैं चाहे दाने दाने को मुस्ताद क्यू ना हो जाऊ मगर जो खाएंगी खिलाऊंगा जो पहनेंगी पहनाऊंगा इतना कहकर राजू घर से बाहर चला गया.. पूश का एक दिन(भाग-4) सर्दी की रात थी राजू की मां की हालत बहुत नाजुक थी उसने राजू को बुलाया और कहा राजू आज लगता है मुझे तुम्हारे पिता जी बुला रहे है बेटा अपना खयाल रखना इतना कहकर उसके मां की गर्दन राजू की गोद में झूल गई । ऐसा लगा मानो आकाश से बिजली गिर गई हो उसकी मां के प्राण ले गई हो राजू निशब्द हुआ मां के चेहरे को देख रहा था उसकी पत्नी कविता भी चीखने चिल्लाने लगी सर्दी की रात बीती गांव वाले भी सुनकर इकट्ठा होने लगे राजू की मां का देहांत जिस समय हुआ उसके पास घर में फूटी कौड़ी भी नही थी। अंततः राजू लाला धनीराम से पैसे उधार मांगने गया लाला धनीराम- कहो राजू कैसे आना हुआ ? राजू- लाला मेरी मां का देहांत हो गया है और मेरे पास मां की क्रिया कर्म के लिए फूटी कौड़ी भी नही है तुम मुझे दो हजार रुपए दे दो। लाला धनीराम- राजू तुम्हे मै पैसा दूंगा मगर तुम्हारी सारी फसल तुम मुझे ही दो हजार में ही बेचोगे तब। पूष का एक दिन(भाग-5) राजू- लाला मेरी फसल मेरी पूरी साल भर की कमाई है मेरे घर की दो वक्त की रोटी और मेरे बच्चो का भविष्य है। लाला धनीराम- राजू अगर तुम दो हजार में बेचो तब तो मैं तुम्हे पैसे दूंगा अन्यथा मेरे पास पैसे नहीं है। राजू- बेचारा क्या करता दरवाजे पर मां की लाश रखी थी उसने लाला से कहा लाला मैं ये सौदा नहीं करूंगा की फसल दो हजार में बेचूंगा बल्कि मैं तुमसे गर्मी तक की मोहलत ले रहा हू अगर तुम्हारा पैसा वापस नहीं किया तो मेरी सारी फसल तुम्हारी। लाला धनीराम एक कोरे कागज पर दस्तखत करवा लिया और राजू को दो हजार रुपए दे दिए राजू घर आया और अपनी मां का अंतिम संस्कार प्रयागराज ले जाकर किया । अब लाला धनीराम के रुपए का व्याज बढ़ने लगा देखते देखते जनवरी से फरवरी आ गया राजू की मटर की खेती बहुत अच्छी थी पूष का एक दिन(भाग-6) एक दिन राजू अपने खेत में गया तो देखा की बीशों बैल उसके खेत में मटर को खा रहे थे। राजू देखते ही उसके पांव के नीचे से जमीन खिसक गई वह रोने लगा और जोर जोर से चिल्ला रहा था। कुछ देर बाद उदास होकर घर लौटा उसकी पत्नी ने कहा आज घर में कुछ खाने को नहीं है जाओ बाजार से कुछ लेकर आओ आज मेरे दोनो बच्चे भी घर आ रहे है शहर से। राजू लाला धनीराम के पास जाता है और और कहता है लाला मुझे एक हजार रुपए और चाहिए आज मेरे बच्चे घर आ रहे है।लाला ने कहा राजू तुम्हे मै एक फूटी कौड़ी भी नही दूंगा तुम वापस ही कहा से करोगे तुम्हारी फसल तो नस्ट हो गई। राजू मायूस होकर घर लौट रहा था फिर उसका मित्र अंजनी उसे मिल गया अंजनी- मित्र कहा जा रहे हो सुबह सुबह? राजू- आज सूरज और ज्योति घर आ रहे है घर में एक दाना भी नही है खाने को अंजनी- अरे! राजू तुम्हे कुछ खुशखबरी देनी है पूष का एक दिन(भाग-7) राजू-मित्र कैसी खुशखबरी ? अंजनी- राजू तुम्हारे दोनो बच्चो का चयन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा कर लिया गया है तुम्हारे दोनो बच्चे कलेक्टर बन गए राजू- मित्र सच में ! राजू खुशियों से पागल हो गया राजू दौड़ा दौड़ा आया अपनी पत्नी के पास कविता हमारे बच्चे कलेक्टर बन गए धीरे धीरे ये बात पूरे कस्बे पूरे प्रतापगढ़ में फैल गई लाला धनीराम आया राजू आज मुझे तुम्हारे ऊपर गर्व हो रहा है तुमने खुद भर पेट नही खाया मगर बच्चो को अच्छी शिक्षा दिया आज तुम्हारे बच्चो की वजह से मैंने तुम्हारा कर्ज माफ कर दिया । राजू को राज्यपाल द्वारा बुलाया गया और सर्वश्रेष्ठ रत्न से सम्मानित किया गया। ( सूक्ष्म अंश पांडेय जी)