संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4715 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) गर्मी आई खूब है,खूब लगे अब प्यास। पानी मधु जैसा लगे,सुख मय हो अहसास।। कभी हवा यूं जब मिले,लगती है नव जान। जैसे दुर्लभ चीज हो,देती है ईमान।। टप टप टपके स्वेद जो,गीला होता गात। ऐसे लगे अजीब सा,उमस भरी हो रात।। पंखा सुखदायक लगे,ए सी में नव चैन। मजा नहाने में मिले,सुबह शाम दिन रैन।। भीड़ लगे बाजार में,खूब रहे नित जाम। रहता कई प्रकार के,नए नए मधु आम।। तापमान की हद बढ़े,और बढ़े मन वेग। जन जीवन में रोष हो,बात लगे दृढ़ तेग।। चमचम करता धूप है,दिलकश लगती शाम। घूमे प्रेमी प्रेमिका,अँखियों में ले काम।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....