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जीवन कुसुमित नित रहे-और रहे विन्यास

संदीप कुमार सिंह 02 Jun 2023 गीत समाजिक मेरा यह गीत समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5362 0 Hindi :: हिंदी

चाह गई चिंता मिटी,मिली दिव्य अब शांति।
तन मन से प्रभु में लगा, रोम रोम में कांति।।

चाह गई चिंता मिटी,मन में है नव प्यार।
सदा प्यार से जग चले,खत्म रहे व्यभिचार।।

चाह गई चिंता मिटी,व्याप्त हुआ आनंद।
सुखद अनुभूति ही मिले,और लगे मकरंद।।

चाह गई चिंता मिटी,आया हँसकर चैन।
बदन हृदय सब अब खिले,लगे भव्य दिन रैन।।

चाह गई चिंता मिटी,मुक्त हुआ अब श्वास।
जीवन कुसुमित नित रहे,और रहे विन्यास।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)
बिहार

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