कवि राजवीर सिकरवार 30 Mar 2023 गीत समाजिक 17072 0 Hindi :: हिंदी
बस अब गीत नहीं लिखने हैं- """”"""""""""""""""""""""""""""""" - एक गीत आपकी समीक्षार्थ- ----------------- बस अब गीत नहीं लिखने हैं । कागज, कलम और स्याही सब, बन्द पिटारी में रखने हैं = बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 1 - अश्लीली साहित्य शहर में, महँगा हाथों - हाथ बिक गया । फिर भी माँग रही जोरों पर, जन मानस का भाव दिख गया । गीतों के संकलन सड़क पर, रद्दी भाव लगे बिकने हैं = बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 2- पश्चिम लय पर फूहड़पन के, गीतों का अब चलन हो गया । देश भक्ति के गीत मर गये, अय्याशी ये वतन हो गया । जन-जन के घर दीवारों पर, नंगे चित्र लगे दिखने है = बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 3- बजती धुनें विदेशी जब जब ,प्रेमी युगल मचल जाते हैं । देश - राग की सरगम छूटी, फूहड़ गीत, गजल गाते हैं । टूटी मर्यादाएं सारी , दिखते सभी घडे चिकने हैं = बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 4- हुई राजभाषा की दुर्गति, तार - तार हो गई सभ्यता । मृत्युसेज पर स्वाभिमान है, खो बैठी संस्कृति भव्यता । इस बेशर्म जमाने में अब, अपने पाँव नहीं टिकने हैं = बस अब गीत नहीं लिखने हैं । = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = राजवीर सिंह सबलगढ़ मुरैना म.प्र