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उत्कृष्ठ धरा की उत्कंठा, जगती को दर्द से जगा रही! विश्राम कर रहें विश्व लोक, कर्म मेहनत को ऊठा रही!! विश्व प्रायन कर्म शुलोक, read more >>
जगा रहें हम जाग - जाग, भारत के उज्जवल नयनों को! जो दिखा सके भारत का भविष्य, इस महा योग सु: ख: चयनों को!! कर्मों से अडीग आराम मिले, read more >>
कहता अभिनन्दन कर अभीवादन, ज़रा तम अधरों को दिप्त करुं! भरकर उजियारा अंधकार मे, धरा को ज्ञान से लिप्त करूं!! धरती कि शख्तियां read more >>
कर्म योग अती पावन निष्ठा, छल भी छलीत हो जाती है! बलवान कि हिम्मत भी आकर, अधरों मे दलीत हो जाती है!! पर्वत कहां झुकते है नदियों read more >>
समा बांध अविराम करे, आशाओं के चाहत पल पल! नयनो के गतीमय प्रगतीमान, उठती है दर्रख्तें कल कल कल!! अती अती अतिश्य चर्म कर्म, read more >>
मैं सोंच रहा था पवन तपोवन, अंतर मन के दृड़ चेतन से! अंधकार की विफल चेष्टा, अरूनोदय की आश लिए!! करूण चेष्टाओं की ध्वनी, read more >>
है अविचलताओं कि करूण धरा, मिट्टी आज़ादी की निशानी है! है शुज्ला, सफ्ला देश मेरा, वतन परस्ती जिसकी कहानी है!! हर ज़र्रों के एहसा read more >>
चलती है हवा ले अधरों से, बिते सारे ऐहसास कई! कूछ उठी धूनी सी सिमट गई, अरमानो के ज़सबात लिए!! ज़सबातो की ले करूण कथा, कि read more >>
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