Raj Ashok 11 Jun 2023 कविताएँ समाजिक निर्माण 8277 0 Hindi :: हिंदी
रौशनदानो की रोशनी मे, ये बड़ी -बड़ी किताबों मे अपना भविष्य डुढ़ते । नौजवान ....... मार्ग दर्शक, माता-पिता अपने स्वप्न जोड़ के देख रहे है। उजालों की रोशनी कहीं इन नन्हे-नन्हे हाथो मे , पकडी़ ऊमीद की ये मशाले ,मन्द ना पड़ जाऐ। एक रोज ,क्या ? ये हर रोज ,युही ऊमीदों का सवेरा इन्हे जगाता है। इतनी मेहनत के बाद भी, अपना भारत क्या पाता है ? विवशता, बेबशी मजबुरी, बेरोजगारो की यहाँ हर एक सुबहाँ । सपने ,दिखाने वाले ही अक्सर,यहाँ भष्टाचार के साथी है। सच, तो है। ये के सच, को समझता कौन नहीं । पर क्या ? वक्त यहाँ पर मौन नहीं अभी ओर मेहनत करनी है। अभी, तो प्राण बाकी है। मेरे देश का नव निर्माण तो बाकी है।