Trishika Srivastava 30 Mar 2023 शायरी समाजिक ईमान बेच चुके हैं 41029 0 Hindi :: हिंदी
ईमान बेच चुके हैं, न जाने किस लाचारी में खड़े हैं दो-चार, उस मक्कार की तरफ़दारी में जिधर मिले मुनाफ़ा , उधर ही ढुनक जाते हैं दो-चार बैंगन ऐसे भी हैं, मेरी रिश्तेदारी में — त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ कानपुर (उ.प्र.)