Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक सांची धूप 28844 0 Hindi :: हिंदी
नमन मेरी मातृभाषा नमन उस भाषा को जो हमें संस्कार देती है नमन मेरी हिन्दी को जो भावों को संचार देती है ! बड़ी बातें बड़े मुद्दे उक्तियों में सुलझाए जाते हैं जीवन के कई रहस्य मुहावरे लोकोक्तियों में बताए जाते हैं भाषा की मिठास हर हिंदुस्तानी को पहचान देती है नमन उस भाषा को, जो हमें संस्कार देती है ! जो बह्या डम्बर युगों से सुलझाए नहीं गए उनके हल कबीर के दोहों में बताए गए तुलसीदास त्रेता का वर्णन एक महाकाव्य में कर गए सूरदास भी बिन आँखों श्रृंगार रस में मोती भर गए मेरी यह भाषा हर हिन्दी को विश्व में पहचान देती है नमन उस भाषा को , हमें संस्कार देती है ! कुछ लोग कोमल मधुर भाषा को मजहबी दरिया में बहा गए रसखान और जायसी तो उस पर भी सेतु बना गए सात समुद्र पार भी भाषा की पहचान बताई जाती है कृष्ण और राम की गाथा इस मधुर भाषा में ही गाई जाती है आज मेरी यह भाषा अपने अपमान पे रोती है नमन उस भाषा को , जो हमें संस्कार देती है ! साहेब ! पर वस्त्र से श्रृंगार नहीं होता पर भाषा से संचार नहीं होता पराई दौलत पर इतराया नहीं जाता पर भाषा में अपने संस्कारों को बताया नहीं जाता अब क्यों रोते हो बच्चे संस्कारी नहीं जनाब तुमने ही तो पर भाषा के गुण गाए थे तुम ही तो नन्हें बच्चे की उँगली पराये हाथों थमा आए थे पर भाषा बोलने पर माँ बहुत ही इठलाती है नमन उस भाषा को, जो हमें संस्कार देती है !
Hindi Lecturer in Government school GSSS Karoa Himachal Pradesh....