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हैं नमन आपकी करुणा को- कण - कण को देता अमरत्व दान

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक This poem is religious and it has been written on the base of Parvati Mother who is godess. I hope it feel well of my all reader or viewer as before every citizens of India and my all Indian Son 29 State and 9 Union Teritory who is consisted by Indian Constitution as act. And most of love of my all Indian Mother or Mother Indian. Jai Hind. Om Parvati. Jai Bhawani. 13739 0 Hindi :: हिंदी

है तृप्त वेदना भारत कि,
कल - कल, कल - कल रत्नेश बहे! 
यहां धरा के र्जर्रें - र्जर्रें में, 
मातृ प्रेम का धार बहे!! 
                    रस भर जाता हैं कवी नयन, 
                    अमर अमरत्व कि गाथा हैं!
                    कण - कण को देता अमरत्व दान, 
                    शीव पुत्र वशुधा का कहलाता है!! 
शक्ती के वरदानी आदि शक्ती, 
जिससे वशुधा का ज्ञान चले! 
हवा, तरूण, तृण, रोम - रोम, 
उनके वरदान पे पले - फले!! 
                       इस प्रकृती कि अमर धरोहर, 
                       गोद भवानी माता कि! 
                       हम हैं बालक ममता के भरे, 
                      और छाव पार्वती माता की!! 
जय - जय भारत, जय अमर धरा, 
जीसे शक्ती का वरदान मिला!
कहीं वीरों का वो वीर रस, 
कही कवियों ने श्रृंगार रसों का बखान किया!! 
                       हैं नमन आपकि करुणा को, 
                       सिंह को अपना ध्वल किया! 
                      भक्तों के हित धर के दुर्गा स्वरुप, 
                      धरती का पावन कर्म किया!! 
जिन चरणों मे देवों के देव शीव, 
अपना मस्तक को झुंका डालें! 
कर रहा ध्यान उन चरणों का, 
प्रशाद ज्ञान के उज्जियालें!! 
      है एक धर्म भारत का ध्वज, 
      जो शीव का सुत्र कहलाता है!
      स्वारी बन धारण भारत रक्क्षक करने वाला, 
      पार्वती पुत्र कहलाता है!! 
हरी ओम भवानी हरे - हरे, 
पार्वती वंदन्म् जय भारत!
अमर धरोहर कण - कण से, 
कर रही धरा को दिव्य नमन!! 
                     कौशाग्र ज्ञान एकाग्र शक्ती, 
                     मे वाश है भोले संकर का!
                     नृत्य कर रहें विकाश धरा पर, 
                     हैं अचल चेतना जण - गण का!! 
अविचलता मे रह कर अचल रखा, 
जो ध्यान ज्ञान पा जाता है!
जो कर्म को गंगा धाम बना ले, 
पार्वती पुत्र कहलाता है!! 
                    पार्वती पुत्र कहलाता है, 
                    पार्वती पुत्र कहलाता है!! 
है तृप्त - तृप्त चाहत मन का, 
संतृप्त ज्ञान से रोम - रोम!
कण - कण मे वाश शीव दानी का, 
है संघर्ष भी कहता हरी ओम!! 
     जमाने ने सताया संघर्षों को शिद्दत तक, 
     हस्ती ना सफलता कि चाहतें मुद्दत तक! 
     जो अदृण चेतना अधुनातन कि बने धरा का 
     अचल सुत्र, 
     शीव नाम जपे कर्मों का रथी कहलाता है 
     पार्वती पुत्र!! 
नमन कलम का नाज़ करे, 
सनातन धर्म का तपी कर्म! 
इक नाम पार्वती जप लेने से, 
हो जाता अध्म विकार खत्म!! 
                         जप - तप कि धरा है ये भारत, 
                         हैं सिंचीत श्रद्धा भक्ती का! 
                         पत्ते का हिलना सम्पुर्ण कर्म, 
                         दान मा आदि शक्ती का!! 
जीवों मे शीव का वाश रहें, 
भक्ती शीव शक्ती कहलाता है! 
कण - कण को देकर मानवता का दान, 
चरितार्थ पार्वती पुत्र बन जाता है!! 
               है अचल धरा का करता बखान कलम, 
               सनातन का सम्मान कलम! 
               कलम दे रहा ज्ञान अचल, 
               इस भारत का अभीमान कलम!! 
कह रहा कलम बन प्रशाद चेतना, 
मानवता का अज़र विकाश धरें! 
जहां धरा के र्जर्रें - र्जर्रें मे, 
मातृ प्रेम का धार बहे!! 

Poet  :-   Amit Kumar Prasad

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