Saurabh Shukla 01 Oct 2023 कविताएँ बाल-साहित्य #love #साहित्य #संस्कार #कविता #पतंग 5952 0 Hindi :: हिंदी
उड़ने से पहले फड़फड़ाती है , ऊंचा पहुंच कर अपना रंग दिखलाती है । है अगर पकड़ मजबूत साधने वाले की , ढील पाकर ऊंचा और ऊंचा उड़ जाती । खुद आसमा में है जब तक , तब तमासबीनों के लिए तमासा बन जाती है ।। है डोर में ताकत ,लेकिन खुद मद से चूर हो जाती है । जुदा कर किसी को , किसी अपने से आसमान में कलाबाजियां दिखती है ।। भूल है उसकी , छलावे की है ताकत , झूठा है ये ऊंचाइयों का छूना ! जिस अहम में वो काट रही है अपनो को ,चढ़ती जा रही मंजिल पर मंजिल अपने सपनों को । जितना लोगो को काट रही है , उतना उसकी डोर भी कटती जा रही है । ये बात उस आसमा में बैठी, अभिमानी को समझ ना आ रही है । बात तो पतंग की कर रहा हूं ,पर न जाने क्यों पतंग में भी इंसान की शख्सियत नज़र आ रही है। अपनो को गिराकर ये भी तो उठता जाता है , गिरता ऊंचाई से , तो किसी अपने को ही संभालता हुआ पता है । संभाल तो लेता है वो , पर क्या उसमे पहले जैसा अब अपना पन पता है वो । पतंग में देखा जाए कुछ ऐसा ही होता , उड़ती तो आसमा में है दोबारा , पर बीच में कही गांठ पड़ जाती है । । ...sVs...