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थकान का पसीना

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkarnagar poetry,#Rambriksh Kavita#Kavita Thakaan ka Paseena#Rb Poetry Ambedkar Nagar#Rambriksh kavita Ambedkar Nagar 17958 2 5 Hindi :: हिंदी

मोती सा मस्तक पर झिलमिल
लुढ़क रहा धीरे धीरे
झर झर झरता पग तल रज में ,
जाता चूम चरण तेरे,
      इस मोती में भाग्य झलकता
        तेरा जी हो लेकर चल,
           तन मन का यह मणिक बूंद सा
               छिपा हुआ तन में तेरे।                   1

गिर मिट्टी में मिल जाता वह
खुद को अर्पित कर देता,
देश भक्ति सम्मान भाव से
 गौरव तन में भर देता,
         धरती धारण कर मोती को
            धन्य समझती अपने को,
               तन मन का यह शीतल जल ही
                 गंगा  पावन कर देता |.                 2

ह्रिदयालय को शीतल कर वह
करती है गहरी गुंजार,
मेहनत का फल मीठा होता
स्वाद सदा होता है खार,         
        परिश्रम-प्रेम-प्रमोद भाव में
           निकल पड़ा अमृत की बूंद,
             स्वेत स्वेद मिट्टी में मिलकर
                 मात्रृभूमि से करता प्यार |.                 3
             
खर खर से खग नीड़ सजाता 
लगा पसीने सीने से,
पूछों जरा शान्ति सुख खग से
श्रम कर जीवन जीने से,
      देखा है मिटृटी में लसफस
        बोते बीज किसानों को,
            देखा श्रमिक थककर बैठे
              भीगे हुए पसीने से |.                     4

ढोता बोझा देखा उसको 
तेज दुपहरी लपटों में,
भावुक भूखा प्यासा था वह
लिए हौसला पलकों में,
         पसीने से हो तर-बतर वह
           रच रहा अपना इतिहास,
             सदा चमकता यही पसीना
               स्वर्ण अक्षर बन फलकों में |.            5

हर उन्नति का राह खोलता
जीवन सुख से जीने का,
बूंद- बूंद आंसू भी देखा
देते दांज पसीने का,
        छिपा पसीने में सुख समृद्धि
          इन्द्रधनुष    के    रंगों   सा,
             तिरंगा बनकर नभ में चमके
               लहू दौड़ता सीने का  |.                 6
        
सुख सुकून सम्मान सहित सन
जाता है मिट्टी तन में,
सुख सुविधाएं आज किसे भा,
जाती है खुद के मन में ?
        सजे सलोने तन भाते हैं
           मिलते जल धाराओं सा,
             धूल सने तन किसे लुभाते
                गंध पसीने का तन में |.               7

महल मिनारें भवन हवेली
गली गली कूचे कूचे,
ईंट ईंट में मिलते देखा
सने पसीने की बूंदें,
                रच जाते इतिहास देश का
                  रज में गौरव भर जाते
                     खोल आंख अन्तर्मन का तु
                         पड़े हो क्यों आंखें मूंदे. |.       8

 कौन समझता ?कब समझेगा
 गिरते   बूंदों     की      कीमत,
 नोच   रहे   जैसे   उपवन   से
 खिलते फूलों की किस्मत |
           माना लेके आया था तू
              पर लेके न जाना है,
                 प्रेम जगत में जी ले साथी,
                    कितना है तु खुश किस्मत |.      9
            

सबका अपना जीवन शैली
जीने का है अपना ढंग,
कोई मीरा बनकर घूमे
कोई भर दे बिष से अंग,
       एक ही पथ है एक ही मंजिल
          चलना है तो मिलकर चल,
               लिख चल तन के श्रम बूंद से
                    जीवन गाथा भरता रंग  |                10


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Comments & Reviews

yashoda
yashoda अति सुन्दर विचार

8 months ago

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yashoda
yashoda अति सुन्दर विचार

8 months ago

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