Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य प्रेम बिना जग अधूरा सूनापन लगता है । 83008 0 Hindi :: हिंदी
मेरे हृदय में तेरे धाम रे प्रियतमा ! हृदय में बस के - निर्दयी तू हँस के ; हृदय मेरा बिखर दिया - करके चूर - चूर , हृदय की रूधिर बना अत्रुनीर ; नयन से बहे निर्झर झर - झर , तन ज्यों रहा निष्प्राण बनकर । कवि बन के पंक्ति मैं लिखता हूँ - बंजर हृदय बाग में - स्वपनों की पुष्प खिलाता हूँ , तेरी आग में - जल रही बाग में ; जलता हुआ चुपचाप मैं दिखता हूँ , जल गया सब कुछ ; रहा नहीं जीवन में और कुछ ; काँटें अवशेष और नहीं कुछ , तुम ही तो थे पुष्प मन की - जो कभी खिली नहीं ; तू अधूरा अभिलाषा जीवन की , ना देख ले कोई - चोरी - चुपके मैं रोता हूँ । इस जीवन की डाली ; श्रावण में झड़ गये - हो गये सब खाली , कूल में नहीं कोई शोरगुल - आज सूख गया हृदय फूल , रे विहंगिनी ! ना तेरी कोई कीर्तन ; दहन बाकी है काया छोड़ गया प्राण , सूखी डाली पे नहीं आती - विहंग गोरा हो या काली ; अंतका अभिलाषा - हे प्रियतमा ! मैं तेरा दर्शन का प्यासा । देख के तेरा रूप मोहिनी ; वहीं से शुरू हृदय की कहानी , चला के चकित - चाल , प्रेम मेरा नव पल्लवित पल ; नादान हृदय समझा नहीं तेरी चाल , हृदय को हृदय से बंँधा - बिछा के प्रेम की आँचल , काट नहीं पाया माया जाल , हृदय से हृदय को लूटा ; माझी बीच धार में नाव को डूबाया , बचा कौन सी हर्ष - उल्लास ; जलधि में डूबके - हृदय को क्यों है ? तेरी प्यास । हृदय को हृदय में करके विलीन - जलती - बुझती अभिलाषा - कूल के श्याम तृण सूखी ; निर्दयी आज पुलिन ; मेरे निच्छ्वास - उच्छवास में - प्रियतमा ! तेरी खुशबू ; मेरी हृदय में तेरी बास , जहाँ हम दोनों बैठे करते थे - आज अकेला बैठा हूँ - होकर उदास । कहाँ है जीवन की निरूपमा ; हृदय से हो अलक्षित - मेरे हे प्रियतमा ! तुम ही मेरे आत्मा के परमात्मा , कौन सी धारा में बहा दिवा - निशा - ठहराव कहाँ कौन सी दिशा , मूर्ख हृदय को क्यों ? तेरी प्रेम की नशा , अलक्षित हूँ सब से ; प्रेम बंधन में बंधा हूँ तब से , बंध गई पाश - जल गया कूल में ; पुलिन में रहा ना श्याम घास , रे प्रियतमा ! कूल में बैठा है - कवि का हृदय उदास । रतन किर्तनिया छत्तीसगढ़ मो 9343698231