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शिक्षक

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक शिक्षक 16361 0 Hindi :: हिंदी

भाव दबाए, इच्छा समाए, ज्ञान विस्तर का राही हूं।
ज्ञान की गठरी सिर धरे, अज्ञान की पाटता खाई हूं।
ढोर को मैं और बनाता, परिंदों को बाज़।
गर्दिश पत्थर पारस बनते, कच्ची मिट्टी ताज।
हूं ज्योतिर्मय ज्ञान पुंज, अज्ञान के लिए तक्षक हूं।
ज्ञान बांटता हूं साहब, शिक्षक हूं।
ज्ञान तारों को झंकृत करता, गाता ज्ञान तराने।
ज्ञान खाता, ज्ञान पीता,ज्ञान लेता,मिले जाने अनजाने।
ज्ञान- दीप हूं जलता, जलना दीपक की नियति।
जलने के लिए ही तो बना,  जलने में ही मेरी गति।
ज्ञान की जुगाली करता, तम का भक्षक हूं।
ज्ञान बांटता हूं साहब, शिक्षक हूं।
कोरे काग़ज़ पर लिखूं, इबारत जहान की।
लोग सोना चमकाते, पारस मणि बनाऊं ज्ञान की।
फ़र्श को अर्श से मिलाऊं, सोचूं सदा वितान की।
मिट्टी को फ़ौलाद बनाऊं, लगा चोट ज्ञान की।
संस्कृति को सहेजे, ज्ञान धरोहर का रक्षक हूं।
ज्ञान बांटता हूं साहब, शिक्षक हूं।
नगर- नगर, डगर- डगर में, बहे ज्ञान की धारा।
इहलोक, परलोक सुधर गया, धन्य भाग हमारा।
मेरी भावना दरक गई, जो दबी हुई थी दिल हिस्से।
अंत समय के लेन देन, मेरे  बंट आए शिष्य।
इस अमूल्य थाती का, संरक्षक हूं।
ज्ञान बांटता हूं साहब, शिक्षक हूं।

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