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"सरकारों द्वारा ठगा जाता हूँ बेरोजगार कहलाता हूँ"

Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक 43975 1 5 Hindi :: हिंदी

दिन-दोपहरी कन्धों पर बोझा लेकर में गाँव से शहर को आता हूँ, 
मेरी बचपन की ना जाने कितनी विरासत में गाँव छोड़कर आता हूँ, 
माँ-बाप का प्यार नही यहाँ अपना कोई परिवार नही यहाँ फिर भी मैं शहर को आता हूँ, 
उमंग ओर उत्साह से भरकर मैं अपने उम्मीदों को पंख लगाने शहर को आता हूँ ।
उम्मीदों की डोर लिए में दिनभर इस कोचिंग से उस कोचिंग को जाता हूँ, 
कंधों पर में बोझ लिये ना जाने कैसे मकान मालिक की रोज फटकारे सुनता हूँ, 
मकान मालिक के ताने-बाने सुनकर भी मैं मेहनत पूरी करता हूँ,
फिर भी ना जाने कैसे में सरकारों के द्वारा बेरोजगार रहता हूँ ।
आती हैं जब याद मुझे मर्म प्यारी सी माँ की तो निपट अकेला रोता हूँ,
अपने दर्द को दिल में छुपाये बस में निगाहों में मंजिल रखता हूँ, 
रोज जलाता हूँ मैं इस कम्पीटिशन की आग में खाना-पानी तक भुल जाता हूँ, 
जब निकलती है सरकार से खबर नौकरी की में उछलकर खुशियों से अपनी तपस्या दूगनी करता हूँ।
रातों-रातों को जग-जग कर भी में सपनों को पंख लगाता हूँ,
अंतिम समय तक आते-आते फिर मे सरकार के द्वारा ठग लिया जाता हूँ, 
दुनिया की हर खुशी भूलाकर मेहनत दिन-रात करता हूँ फिर भी मैं बेरोजगार कहलाता हूँ ।

Comments & Reviews

संदीप कुमार सिंह
संदीप कुमार सिंह बहुत खूब

8 months ago

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