Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जितेन्द्र शर्मा की कविता। 88970 0 Hindi :: हिंदी
कविता . -हंसी खो गई है। रचना -जितेन्द्र शर्मा। तिथी -14/01/2023 सब कुछ तो है, बस हंसी खो गई है। पेड़ से उतर हमने अट्टालिका भवन बनाये हैं। सोने चांदी से जड़े हुए परिधान सिलाये हैं।। तन तो ढक लिया, आत्मा नंगी हो गई है। सब कुछ तो है बस हंसी खो गई है। चांद तारों पर बैठे हैं पर अपनों को खो दिया है। पाया तो बहुत है पर सपनों को खो दिया है।। ज़िन्दगी की जंग में ज़िन्दगी ही सो गई है। सब कुछ तो है, बस हंसी खो गई है। फ्रेंडशिप की दौड़ में रिश्ते ही भुला दिये है। माता पिता और भाई के सपने सुला दिये है।। लव ही तो बचा है, स्नेह और ममता खो गई है। सब कुछ तो है, बस हंसी खो गई है।