Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक रोक-टोक 19292 0 Hindi :: हिंदी
ताड़न अक्सीर से, शख़्सियत का सरूर बदल जाता है। टोक की ओक से, नक़्शे नूर बदल जाता है। ख़राद से ही, अक्स चमकता है। करका-कण दामन, तरासने से दमकता है। अहम् की हदस से, जो भटक जाते हैं। जीवन- ज़मीन में, करहंज फ़सल पाते हैं। छेवा के मेवा से, जीवन वल्लूर बदल जाता है। टोक की ओक से, नक़्शे नूर बदल जाता है। गुरु की इबादत, गुणगान करो। कटीले वचनों का, रसपान करो। रोकने-टोकने से, अवगुण झड़ जाते हैं। बिन माली के बाग़, अकसर उजड़ जाते हैं। माली की गाली से, हजूर का दस्तूर बदल जाता है। टोक की ओक से, नक़्शे नूर बदल जाता है। ज़्यादा मीठा, मीठा ज़हर, है मीठी बदमाशी। जीवन फ़सल में टोकना, है खरपतवारनाशी। जो टोकता, रोकता, है सच्चा हितैषी। कड़वी औषधि जड़ काटती, नुसख़ा है देशी। रोक की जोंक से, लहू का लूर बदल जाता है। टोक की ओक से, नक़्शे नूर बदल जाता है। ताड़न अक्सीर से, शख़्सियत का सरूर बदल जाता है। टोक की ओक से, नक़्शे नूर बदल जाता है।