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परोपकार

Santoshi devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #अच्छाई#भलाई#सुख-दःख 12628 0 Hindi :: हिंदी

विषय-परोपकार

दूजे अंतर मन की पीड़ा, क्यों कोई है जाने।
अपने से बढ़ इस जीवन में, पीर नहीं वह माने।।

साध रहे सब काज यहां पर,देख-देख कर मौका।
इस कारण यह डूब रही है, मानवता की नौका।।
देखी सूरत गोरी-गोरी, चित्त हमेशा काला।
रिश्तो की कच्ची रख डोरी, धोखा मन में पाला।।

मानव के हर पहलू में यह, दर्द सभी के हिस्से।
विरले ही वह बंदे हो जो, कहते सुख के किस्से।।
विश्वास भरो  अपनेपन का, अपनी ही बातों से।
दुख का सागर क्यों भरते हो,रोज नहीं घातों से।।

परोपकार मन में लाए तो ,पीर यहां बंट जाए।
मानव मन मुस्कानों में फिर, रंग नया घुल जाए।।
संतोषी इस जग में क्या तू, रही एक दुखियारी।
रोज किसी न किसी की आती, रही बराबर पारी।।

 संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।

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