मोती लाल साहु 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक Kavita, dharmik kavita 8213 0 Hindi :: हिंदी
मैं थी पुजारी-प्रीतम, पहुंची इसी देश। योग-युगत करके हार, गई पाई न प्रेम।। अर्थ-पृथ्वी पर जन्म हुआ, ईश्वर की महिमा सुन हृदय में अपार प्रेम जगा। ईश्वर प्रेम में मैं दीवानी अपने प्रीतम को ढूंढने लगी, पूजा-पाठ-व्रत-उपवास-मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा -चर्च-दरगाह हर जगह गई, नाना तरह का उपाय करके हार गई प्रीतम कहीं नहीं। जहां में प्रीतम का घर, वहीं देश-उपदेश। प्रीतम-पिया संग रास, रचाई उर अंदर।। अर्थ-जिस जहां में मेरा प्रीतम का घर है, वह दुनिया वह देश मेरे हृदय के अंदर है। पिया-मिलन का जगह ह्रदय है, समय के महापुरुष के उपदेश से संभव है। ईश्वर से एकाकार होने का जगह हृदय है। मोती -