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पक्षी

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य पक्षी 13738 0 Hindi :: हिंदी

न जीवन- शिकवा, न रोता धोता।
काश, मैं पक्षी होता।
पर फैलाता, अनंत नील गगन में।
परवान चढ़, आसमां नापता खुली पवन में।
लहराता, इठलाता, हवा में करता कलोले।
मेरा मन, तेज़ उड़ूं या हौलै हौले।
कभी हवा के साथ, कभी हवा में गोता।
काश, मैं पक्षी होता।
कभी इस डाल, कभी उस डाल से रिश्ता जोड़ता।
छोड़ डाल पकड़ ली मंजरी, हवा में झूला झूलता।
आम चख, निबौरी खाऊं, नज़र गई कनेर पर।
बौर बहुत बुरा लगे, भा गई सूखी टहनी मुंडेर पर।
माली से, आंख- मुंदाई में खोता।
काश, मैं पक्षी होता।
न जोड़ना, न छोड़ना, न ही चिंता कल की।
रिश्तों का गुंफन नहीं, न चिंता कर्म व फल की।
मनमौजी, अलमस्त, सुर सुरीली तान।
मैं मेरा डैना, किसी से न लेना देना, है तो सारा जहान।
मैं मेरा साथी एक डाल, वो गगन खेलता सोता।
काश, मैं पक्षी होता।
न सीखा- सिखाया, न बना- बनाया, मन की ही बोलता।
पंख फैला अपने साथी से, दिल की खिड़की खोलता।
राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत, पेट भरता।
मैं पक्षी का पक्षी रहता, इस योनि पर नाज़ करता।
यदि मनुष्य, मनुष्य ही रहता, तो आज इतना नहीं रोता।
काश, मैं पक्षी होता।
काश, मैं पक्षी होता।


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