Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक This poem is on the base of a great saint Bhagirathi of life. 17410 0 Hindi :: हिंदी
राजा सगर दिग्गज रण विजयी, धरती पे ऋश्र बड़ाने को! कर रहे थे धरा पर महा यज्ञ, देव राज कहलाने को!! मानव कल्याण के सत्य धर्म, इन्द्र सेन का आसन डोल गया! यज्ञ बली के अश्व चूराने को, इन्द्र राज धरा पर पहूंच गया!! ले गये अश्व को बांध दिया, कपिल मूनी के यज्ञ कि जगह! जो सौ वर्षों का महा तपी, शीव के ध्यान मे जुटा हूआ!! अब ढूंढ रहे सगर पुत्र पित्र, आदेश का वचन लिए! यज्ञ है अधूरा अश्व बिना, होगा यज्ञ उन्का कैसे पूरा!! ब्रह्म पूत्र नारद करने मार्ग प्रशस्त, अम्बर से धरा पर पहूंच गए! अश्व तुम्हारा भारत के पश्चीम मे, नमो नमो जय हरे हरे!! भेदन लगे सगर के सौ प्यारे, रती को मूनी तक पहूंच गए! अश्व को पाया कपील मूनी के पिछे, उनको ही ठगी समझ बैठे!! ध्यान मग्न ऋषी को लातों से, जगा रहे थे मार मार! ध्यान टूटा शीव ज्ञानी का, करने लगे उनपर शब्द का प्रहार!! क्रोध मे आकर महा मूनी ने, क्षण भर मे सौ को श्राप से भष्म किया! शीव की तपस्या टूट गयी, ईस लिए मन उनका व्याकूल था!! सगर के सौ से एक पूत्र, अंशुमान जी पुरब से पश्चीम थें! वो भी ईश्वर के भक्त बड़े, पहूंचे मूनी के आश्रय मे!! श्रमा- श्रमा हे दया निधय, ईन्हें श्रमा का दान करो! आप तो जीवों के महा भक्त, ईस भक्त की करूणा कि लाज रखो!! श्राप नही वापस किया जा सकता, मूनी ने मूक्ती का मार्ग प्रशस्त किया! गंगा मा नही है वशूधा पर, तुम्हे ब्रह्म देव प्रसन्न करना होगा!! हीम गीरी के पर्वत पर अंशुमान जी, ध्यान को लगा दिए प्रसन्न हूए न भक्ती से, पाच वंश ध्यान भी लगा दिए, दिलीप सूत थे भगीरथी!! जो बचपन से ब्रह्मा कि भक्ती मे, प्रसन्न हूए फिर ब्रह्म देव, मांगे भगीरथ गंगा धरती पे, ब्रह्मा जी बोले गंगा का भार बहूत!! धरा पे नही वो ठहरेगी, पाताल पे होगा धरती भेद गमन! फिर कैसे तुम धर्म निभाओगे, जा कर शीव जी का ध्यान करो! जो ऋषी केश कहलातें है, जटा मे मा फिर उतरेगी! सीधी मेरी कमंडल से, जय नमो नमो शीव हरे हरे!! ध्यान लिन फिर कल्प कल्प, महादेव को प्रसन्न किया! भक्त कि मनषा पुरी कर, माता को जटा मे बांध लिया!! जय.... नमो नमो... शीव... हरे हरे, मा गंगा फिर बोली मेरे वत्स! मै तो धरती पर आ जाउं, फिर मै मलीन हो जाउंगी!! मेरा कष्ट कैसे मिटाओगे, ज्योतिर्लिंग स्वरुप शीव शंकर का! उनको कंधे पर उठा लो तुम, स्थापित कर दो उस जगह पे तुम!! जहां मेरा भ्रमण खत्म होगा, धो धो कर मै सब का पाप! मै शीव पे फिर गीर जाउंगी, जय नमो नमो शीव हरे हरे!! भार को कम कर शीव शंकर, कंधे पे पहूंचे भगिरथ के! चलने लगी पिछे मा गंगा, हिम नरेश शैल की पुत्री!! जय नमो नमो शीव हरे हरे, जग जग कि रित वो मीटा दिए! अपने श्रद्धा के कर्म बल से, पित्रो का उद्धार हुआ!! जा पहुंचे वो गगन पथ मे , जय नमो नमो शीव हरे हरे! महा तपी तपो मन कर्म बली, शंख नाद अहवान करे!! मा गंगा का एक नाम, भगिरथी गंगा का हिन्दुत्व भी ध्यान करे! चल पड़े थे शीव हो कर प्रसन्न, धरती कि व्याधा हरने को!! अमर गंगा से भगीरथी वंश, भगीरथ से गंगा का भार भी अमर रहे, जय जय नमो नमो शीव हरे हरे, जय नमो नमो शीव हरे हरे!! नमन भगीरथ गंगा को, और नमन है भक्ती कि शक्ती! जिसने बदली शदियों की कथा, दी धरा को पवित्रता की शक्ती!! मै करता नमन वो बाहुबल, जिसने शीव को उठाया था! गंगा चली शीव जी के पीछे पीछे, शीव नमो नमो जय हरे हरे!! Poet : - Amit Kumar Prasad कवी :- अमित कुमार प्रशाद
My Self Amit Kumar Prasad S/O - Kishor Prasad D/O/B - 10-01-1996 Education - Madhyamik, H. S, B. ...