akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक आज के समय में आम आदमी की अभिव्यक्ति मुझको समय नहीं है 22934 0 Hindi :: हिंदी
*कविता * * मुझको समय नहीं है * अब जिंदगी की कैसी, रफ़्तार बढ़ रही है | हर कोई कह रहा है, मुझको समय नहीं है | बचपन के दिन हमारे थे कितने प्यारे प्यारे | पैदल और साईकिल ही, तब साधन थे हमारे । उस धीमी जिंदगी में, समय की कमी नहीं थी | था सुकून जिंदगी में, बस खुशी ही खुशी थी | उन दिनों हमें पढ़ाईं का, कोई टेंशन नहीं था | हर छात्र पर शिक्षक का ध्यान केंद्रित था | कोचिंग का उन दिनों में, कोई चलन नहीं था | हमें आज भी है याद, उन दिनों जो पढ़ा था | उन दिनों खेलने का, हमें समय भी बहुत था | छोटे छोटे घरों में, सब मिलकर रह रहे थे | एक ही की कमाई में, सब लोग पल रहे थे | अब घर में सब कमाते, फिर भी कमी बनी है | माँ - बाप के लिए, अब घर मे जगह नहीं है | अब बच्चों को खेलने का समय ही नहीं है । नित नए पेटर्न में, अब शिक्षा बदल रही है | बच्चों की शिक्षा घर घर में टेंशन दे रही है | ऑनलाइन शिक्षा की, अब रफ़्तार बढ़ रही है । मोबाइल से सभी की जिंदगी बदल रही है। अब आपसी रिश्तों में दूरियां बढ़ रही हैं । अब अपनों के लिए, किसी को समय नही है । अपनों से दूर रहकर, दूजों से निभ रही है | अब जिंदगी की कैसी, रफ्तार बढ़ रही है । हर कोई कह रहा है, मुझको समय नहीं है |
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