DINESH KUMAR SARSHIHA 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य मन,व्यथित, 21934 0 Hindi :: हिंदी
मन व्यथित क्यों उलझा सा रहता हूँ.. जाने क्या है जो उदास किये रखा है.. रह रह कर खो जाता हुँ... बहुत सोचता हूँ कैसे दूर करूँ ... दिल की उलझन कैसे बाँटू अपना गम फिर भी न जाने मन वही हो जाता है... कैसा है ये चंचल मन कहीं ठहरता ही नहीं विकट पहाड़ सी हो चली है ये जीवन कैसे बहलाऊँ कैसे मन को समझाऊं... आ !मेरे मन कुछ तो सोचें हल्का सा कर जाऊं.… अपने आप को ऐसा जतन कर पाऊं कंटीले सा जां पड़ता है.... दूर करूँ अब ये सब दुविधाएं मन को खुश करुँ... एक ऐसा सार्थक पहल कर जीवन को फूलो की खुशबू दे जाऊं।।।।
I am fond of writing Poetry and Articles.I enjoy writing about culture,social and divine subjects.S...