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मन की चाह

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkar Nagar poetry#rambriksh Kavita#कविता मन की चाह#मन की चाह कविता रामबृक्ष#मन पर लिखी कविता 13628 0 Hindi :: हिंदी

मन क्यों चंचल इच्छा अनंत,
खोजे किसको हर क्षण हर पल |
संतोष नहीं ना शांत कहीं,
किसको पाने का रहता विकल ||
यह रंग रंगीली है दुनिया,
होता रहता नित नया यहां               
               है सार जगत का प्रेम-प्रसंग|
               मन क्यों चंचल इच्छा अनंत ||
       
सुख क्षणिक हुआ, जब मिला एक,
फिर आया मन में,मिल जाए अनेक
न मात -पिता, न भाई-बहन,
सब महत्वहीन,न लगे अहम,
क्या खाऊं पीऊं पाऊं,जग में,
क्यों बढ़े लालसा रग रग में,        ,       
                 मन की चाहत हो उठे ज्वलंत |
                 मन क्यों चंचल इच्छा अनंत ||
    
यह रहस्य अलौकिक है मन की,
न बड़ी वस्तु दौलत धन की,
इच्छा को कौन समझ पाया?
भरपाई इसका कर पाया,
           करता विचरण मन मतंग |
           मन क्यों चंचल इच्छा अनंत। ||
मन ढूंढ रहा है परमानंद,
कागज के फूल में कहां गंध,
आनंद खोज के पागल पथिक
मन को न कर इतना व्यथित,
जिस दिन होगा ईश्वर से मिलन,
 सुख शांति करेंगे आलिंगन               
                तब अनंत चाह का होगा अंत |
                मन क्यों चंचल इच्छा अनंत ||
        
    Rambriksh, Ambedkar Nagar


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