मारूफ आलम 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक # समाजिक शायरी # rahshymay 17268 0 Hindi :: हिंदी
लोग कहते हैं कि सैकड़ों मुल्क हैं तुम्हारे लेकिन फिर भी फिरते हो दर दर मारे कभी बर्मा कभी काबुल कभी फिलीस्तीन कभी यमन से भगाए जाते हो बड़ी बेकदरी है तुम्हारी अपने ही चमन से भगाए जाते हो तुम पे ये इल्जाम है कि तुमने दुनियाँ मे उथल पुथल मचाई है तुम रखते हो बंदूकें सिरहाने अपने दुनिया की हर कौम तुमसे घबराई है दुनिया ने तुम्हे तो देखा मगर तुम्हारे हाथों मे हथियार थमाने वालों को नही दुनिया ने तुम्हे तो देखा मगर तुम्हे जलाने वालों को नही आखिर कैसे दुनिया इतनी अंधी हो सकती है और कैसे वो इल्जाम लगा सकती है उन पर तेल लूटने के खातिर ,बम बरसाए गए जिन पर मरता तो क्या ना करता ,आत्मरक्षा मे ही उठाए हैं पत्थर उन्होंने सीरिया लेबनान यमन फिलीस्तीन मे जुल्म सहा है जिन्होंने आत्मरक्षा हर किसी का अधिकार है मजलूमों को जो सताए लानत है उसपर उसपर धितकार है मारूफ आलम