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मारूफ आलम 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य # लिचिंग# शायरी# कविता 21553 0 Hindi :: हिंदी

वो भीड़ राम के नारे लगाने वालों की थी
वो भीड़ राम के चाहने वालों की थी

हाथों मे खंजर और तलवार लिए फिरते थे वो
होठों पर थे राम उनके और 
दिल मे अंगार लिए फिरते थे वो

वो सारी हदों को आज पार कर देना चाहते थे
वो हर एक मासाहारी को संगसार कर देना चाहते थे

उन्होंने ये दर्स मार, मरन का कहां से सीखा था
वो पीते थे लहू मुस्लमानों का और फिर
कहते थे ये फीका था

वो थे मांसाहारी अगर यही उनके पाप थे
तो फिर ये बताओ दशरथ क्यों गए थे शिकार पर
वो तो राम के बाप थे
मारूफ आलम

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