मोती लाल साहु 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक चराचर जगत में जीव नाना योनि से गुजरते हुए, कठिन दु:ख को भोक्ता है। जब ईश्वर की अति कृपा होती है, तब मानव तन मिलता है। मानव तन ही जीवन का मंजिल है। यह मनुष्य शरीर ही ईश्वर का मंदिर है। 7020 0 Hindi :: हिंदी
लाखों जन्मों का सफर, मेरे पास मंजिल। मानव तन ही है द्वार, हुजूर का दरबार।। अर्थ-चौरासी लाख योनि का कठिन मार्ग तय करने के बाद, परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा से यह मनुष्य तन प्राप्त हुआ है। यह देह ही मोक्ष का दरवाजा है, ईश्वर का मंदिर है।जीवन का मंजिल अंदर हृदय में मौजूद है। मैं दृश्य देखा अद्भुत, दिव्य ज्ञान की ज्योति। झिनी-झिनी अनहद सुर, सद्गुरु ही गोविंद।। अर्थ-इस मानव देह वजूद में सद्गुरु कृपा से जब दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है, आंतरिक नेत्र खुलता है। तब ज्योति स्वरूप - आदि शब्द, रूप परमात्मा का अपने ही अंदर हृदय में अनुभव होने लगता है। सद्गुरु ही निराकार ब्रह्म का साकार रूप हैं। मोती -