Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य कली बनके फूल 15513 0 Hindi :: हिंदी
काली बनके फूल बाग मे महकने लगा गुलशन भी कली को तरसने लगा मैं भी दिवाना हूँ उस कलि का जो मेरे हृदये के डाल पे खिलने लगा ज़िन्दगी रात की तरह ढलने लगा रोज एक दिन की तरह कमने लगा अब तो मैं, मैं को ही छलने लगा भुख रूपी नाग खुद को ही ड्सने लगा