Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक #कला 67570 0 Hindi :: हिंदी
ए शारदा माँ झूठ बोलने की मुझे कला दे दो ! भेद सके न जिसको सच,ऐसा मुझे कवच दे दो !! सच सुनने की अब, किसी को आदत नहीं । सच कहने की अब,जुबां में ताकत नहीं || सच कहा जिसने,उसकी सामत नहीं। चेहरा बयां कर सके न सच,ऐसा मुझे मखौटा दे दो ॥ ए शारदा माँ झूठ बोलने की मुझे कला दे दो। भेद सके न जिसको सच,ऐसा मुझे कवच दे दो ।। खुद से कभी मिला ही नहीं,जिंदगी अपनी जिया ही नहीं ! खुद से हुई जब मुलाकात मेरी,खुद को समझने में हुई मुझसे देरी !! जिंदगी अपनी जब भी जिया,प्यार के लिये तरसता रहा ! इस रंग मंच पर ठहर संकू,इस अदाकार को वो अदा दे दो !! ए शारदा माँ झूठ बोलने की मुझे कला दे दो। भेद सके न जिसको सच,ऐसा मुझे कवच दे दो !! झूठ का बोलबाला सच का मुँह हो गया काला । झूठ, फरेब, और मक्कारी,आज के मानव की लाचारी ॥ तुन्हें क्यों दी फिर मुझको, जिंदगी ये बैमानी ! सच का जो रोग लगाया, इसकी मुझे दवा दे दो !! ए शारदा माँ झूठ बोलने की मुझे कला दे दो। भेद सके न जिसको सच,ऐसा मुझे कवच दे दो !! विपिन बंसल