Sunil suthar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक आज बचा कुछ भी नहीं, जिंदगी का फलसफा, दुनिया कि मोह माया, दुनिया कि भागदौड़, 10140 0 Hindi :: हिंदी
कविता (आज बचा कुछ भी नही) थोङे ख्वाब ,थोङी हकीकत, थोङे सवाल, थोङे जवाब, समझने-समझाने मे गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही ।। कुछ अपने, कुछ पराये, कुछ नामी कुछ बेनाम से, रिश्ता निभाते-निभाते गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही ।। थोङी जरूरत, थोङी पेट की मार, रोटी कपङा और मकान, बस इतना कमाते-कमाते गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही ।। कहीं कांटे ,कहीं फूल, कहीं पत्थर मुझे पङे मिले, एक नजर, एक ख्वाब, फिर एक ही मंजिल, पास आते-आते गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही... कहीं उम्र का दिखावा, कहीं सोच की कमी, कहीं दुआ लगी,कहीं बदुआ भी , यही सुनते-सुनते गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही।। थोङी मेहनत, थोङी तकदीर से यारी, कभी सुल्तान तो कभी फकीर बने, इन्ही हालत-हालातों मे गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही।। कभी जिम्मेदारी ,कभी मजबूरी, कभी कामयाबी तो कभी नाकामी, किन-किन हालातो से गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही।। ना कभी समझा पाया मै, ना कभी समझ पाए तुम, बस इन शिकवे शिकायतो मे गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही ।। लिखे कलम से सब एक पन्ने पर है, "सुनिल" ने तेरे हर सवालो के जवाब, बस यूं लिखते-लिखते गुजर गई उम्र सारी, आज बचा कुछ भी नही ।। 🕙🕦 -: सुनिलनारायण ...✒