Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कल की उलझन 44166 1 5 Hindi :: हिंदी
कल, कल हो क्यों नहीं जाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता? अनाहूत, ज्यों नटखट बच्चे। दबे पांव, ज्यों देकर गच्चे। सूरजमुखी, ज्यों सूरज ताके। चूजे, ज्यों दाने पर भागे। इस तानर, क्यों गोते खाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता? जहां अब है, वहां सब है। जहां कल है, वहां छल है। जो डर गया, वह मर गया। जो मर गया, वह घर गया। कल, अब में क्यों नहीं समाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता? सोता हूं, जगते हुए। जगता हूं, आंख लगते हुए। जीवन, सुबह ही धुंध। वर्तमान, कुंद का कुंद। जीवन कुंद, कुंद बन क्यों नहीं जाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता? कल, कल हो क्यों नहीं जाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता?
2 months ago