Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक ज़माना 21234 0 Hindi :: हिंदी
ज़माना, तेरी उल्टी फिरती चाकी। सरलता का मोल नहीं, सबको भाती है चालाकी। सीधे को कहते हैं, इसको कोई ज्ञान नहीं। चमत्कार को नमस्कार, सीधे की पहचान नहीं। सीधे मन से वह करता, किसी का अपमान नहीं। वह तो बेवकूफ़ है, उसे मेरी कुटिलता का भान नहीं। सीधे को बेवकूफ़ समझते, क्या रह गया बाक़ी? सरलता का मोल नहीं, सबको भाती है चालाकी। वह तो सीधा है, कहकर सीधे को देते हैं छोड़। कुटिल और शातिर को, सब चलते हैं हाथ जोड़। चापलूस इस दुनिया में, पाते हैं लंबी दौड़। ऋजु स्वभाव व्यक्ति को, आते हैं कई मोड़। ग़रीब की जोरू सबकी भाभी, चाहे लगती हो काकी। सरलता का मोल नहीं, सबको भाती है चालाकी। लोग दिखाते, झूठा ग़रूर। मिल गया तो मेरा, नहीं खट्टे हैं अंगूर। ग़रीब का रोष पेट में, रहने को मजबूर। एक अनजान नशे में, रहते हैं सब चूर। ये नशा ही नाश का, बना है, बनेगा साखी। सरलता का मोल नहीं, सबको भाती है चालाकी। ज़माना, तेरी फिरती उल्टी चाकी। सरलता का मोल नहीं, सबको भाती है चालाकी।