Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य इस जीवन से सुख -दु:ख से गहरा रिश्ता है इस में सुख - दु:ख का मर्मिक चित्रण है । 14365 0 Hindi :: हिंदी
सुख - दु: ख को लेकर साथ - चल रहा जीवन रथ ; सुख - दु :ख के पहियों से - चलता जीवन धरा , दु:ख की बेला हो - टूट जाए धैर्य तुम्हारा ; अत्रु से नयन भर जाए तुम्हारा , और टूट जाए साँसों कि - डोर तुम्हारा , कैसे देख पाओंगे - निशा में सजा के - टिम - टिमा रहा चाँद - सितारा ; नयन खोल के देख लो - गगन कितना लग रहा प्यारा । सुख -.दुख के पहियों से - चलता जीवन धरा ; बेला ने लगाया - दु : ख की धारा , हालत से करों लड़ाई ; जग के देखों - तेरे जीवन में आ रहा - नया सवेरा दुबारा , गिरि को चीरता हुआँ - फैल रहा उस का रोशनी - डर के भग खड़ा तिमिर , जीवन के हालत से लड़ो ; तुम आगे बढ़ो - दिखाओं ! तुम हो सच्चे वीर । सुख - दु: ख के पहियों से - चलता जीवन धरा ; जब लागू होता सुख का धारा - हँसता - खिलता सृष्टि सारा ; पतझड़ में पुष्प देखता नयन तुम्हारा , पुष्पों के साथ काँटें होते हैं - ऐ भी एक रीत है , इस में छुपा ! समझ लो - गुड़ रहस्य का गीत है , सुख को पाने वाले - दु:ख को भूल गया जग वाले , सुख के बेला - असत् अपनाने वाला ; सत् की चक्की में - असत् बारीक से पीसता है ; कैसे भूल गया - सुख - दु:ख का गहरा रिश्ता है । सुख - दु:ख के पहियों से - चलता जीवन धरा - सुख में दु:ख को भूल जाना - मानस की रीत है ; तू धर्म को भूल गया , रवि अदृश्य होता है , जग का रीत है , दु:ख के आगमन से - बिलख - बिलख के रोया है ; सुख के अभिलाषा से - मन्नतें माँगते - फिरते - नयन जल से कितने के चरण धोया हैं , आज पतझड़ ना होता - तू आज ना रोता ; सदाबहार को पतझड़ का एहसास है - सदाबहार - पतझड़ ; छायावाद का पहलू है , सदाबहार के होठों पे - पतझड़ की गीत है , सदाबहार को फिर - नव पल्लव की अभिलाषा ; एक - दूजे से हैं अभिलाषा , पतझड़ तो एक रीत है , उस के होठों पे - नव - पल्लव की गीत है , सुख - दु: ख के पहलू से - बना जीवन धरा - इन के पहियों से- चलता जीवन धरा । पुष्प रे तू कौन ? तेरा परिचय क्या ? खुशबू से होता तेरी पहचान , छिपा है वाज़िब - ज्ञान ; जो मिला ! तुझे कर्म से - भगवान से वरदान ; स्वपन तो आनन्दायी जीवन - जगा तो सँघर्ष - कर्मियों के जीवन ; कर्म में छिपा है जीवन का अनमोल आनन्द , जल में जितना जाओंगे - उतना ही भीगेगा बदन ; सँघर्ष में छिपा है जीने का आनन्द , आनन्द - निरानन्द के पहियों से - चलता जीवन धरा - देखते रहने से नहीं - नदी में उतर के ही - सुख - दु:ख को लेकर साथ ; चला के जीवन रथ , पार करना पड़ेगा ; तरंगाघात जीवन धरा । रतन किर्तनीया छत्तीसगढ़ जिला :- काँकेर पखांजूर