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होलिका दहन क्यों?

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkarnagar Poetry#Rambriksh Kavita#holika Dahan kyon kavita#Holi per kavita 11533 0 Hindi :: हिंदी

कविता-होलिका दहन क्यों?


आज दहन की रात
चांद से सुंदर मुखड़े का
उठेगी जन ज्वाला अंगार
जलेगी एक नारी सम्मान
उठेगी गंगा में ज्वार आज
होगी हुल्लड़ो की सौगात। 
आज दहन की रात

वह भी किसी की बहना थी
बेटी थी मां की गहना थी
प्रहलाद संग ली अग्नि समाधि
जो होना था वह हुआ नहीं
या घातो से हो गयी अघात।
होगी आज दहन की रात। 


हर साल मनाते क्यूं होली
क्या जली होलिका न भूली
या हो रही तैयारी अब जलने की
हर दिन बेटी बहना कल की
फिर दहक उठेगी खाक। 
आज दहन की रात। 


इक नारी  हो गयी खाक
ओ भी अचानक रातो रात
हाथ रस में हो गयी बड़ी बात
था समय वही थी वही रात
सह गयी होलिका सी उत्पात। 
आज दहन की रात। 


अपमान कलंक का कीचड़ ही
लोगों पर फेंका जाता क्या?
दारू गांजा भांग धतूरा
त्योहार यही सिखलाता क्या?
छोड़ बुराई करें भलाई
मिल करके एक साथ। 
आज दहन की रात। 

हरियाली का रंग सुनहरा
चना मटर गेहूं जौ बाजरा
कहते फसलें खुद लहराकर
हो ली हम तैयार,
यही होली त्योहार,
आज जश्न की रात। 
कैसी दहन की रात !


होली में रंग मिल जाते ज्यों
मिल जाते मन खिल जाते त्यों
हाथों की अंगुली सी बाली
आधी रात जलाते हो क्यों
मिली खुशी से हुई जलन क्यों। 
यह कैसा प्रतिघात!
आज दहन की रात। 

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