Meenubaliyan 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक हम और हमारे रीती रिवाज़ 19711 0 Hindi :: हिंदी
खड़ी हुईं है आज सभ्यता चौराहे और कोनो मे मानवता शर्मसार हो गई अपने खेल रचाने मे, सारे ही संस्कार खो दिए हमने नये जमाने मे भाई को भाई ना समझें माँ का ना बेटा होवें, बेटी निकले कमाने को अब तो जग मे बदनामी होवें, माँ बाप ना पाले जावे सास ससुर सब कुछ बन जावे जी रहे है कैसी जिंदगी हम इस नये ज़माने मे सारे ही संस्कार खो दिए हमने नये ज़माने मे, बन जाये अगर एक राम तो लक्ष्मण तो लाखो मिल जाये हो माता यशोदा जैसी हर बेटा कान्हा बन जाये, कैसा हो संसार अगर तो रामराज फिर से आ जाये जी लेंगे हम सच्ची जिंदगी इस झूठे अफसाने मे सारे ही संस्कार खो दिए हमने नये जमाने मे....
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