अनिल कुमार केसरी 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक रामायण का वह पात्र, जो रामायण की कथा में नदारद रहा, उसी उर्मिला के दुःख को बताती कविता। 7646 0 Hindi :: हिंदी
कहो! उर्मिला... कहो! उर्मिला... महलों का वैभव, कितना दारुण दुःख तुमको देता रहा? विरहा की अग्नि, कितना तुमको महलों में जलाती रही? कहो! उर्मिला... तेरा मौन अकेलापन, कितनी रातों तक रनिवास में सोया नहीं? तेरे मन का सूनापन, कब तक तुमको पति याद में रुलाता रहा? कहो! उर्मिला... पतिधर्म का पालन, कितने वर्षों तक अनथक करती रही? पतिनाम की मेहंदी, कितने दिन तुमने अपने हाथों में रची? कहो! उर्मिला... महाकाव्य की आँखें, पहचान तुम्हारी क्यों नहीं देख सकी? महती बलिदान तुम्हारा, ग्रन्थों की वाणी क्यों नहीं बोल सका? कहो! उर्मिला... तेरे त्याग की कहानी, क्यों जग का निष्ठुर मन पढ़ नहीं पाया? तेरी आँखों का खालीपन, क्यों अतीत के अंधेरों में गुमनाम हुआ? कहो! उर्मिला... शोलों पर तपकर बीती, अपनी कहानी तुम क्यों नहीं लिख पायी? कवि मन की गहराई, कैसे तेरी पावन कहानी लिखना भूल गयी? कहो! उर्मिला...।