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कितने महँगे हो गए-जग में सभी समान

संदीप कुमार सिंह 22 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8732 0 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद)
 कितने महँगे हो गए,जग में सभी समान।
 पढ़े लिखे कम अब यहां,रखते सभी कमान।।

कितने महँगे हो गए,आज सत्य का बोल।
लगे हुए जन झूठ में,और बजाए ढ़ोल।।

कितने महँगे हो गए,पाना अब सम्मान।
करने लगे मजाक सब,समझे बड़े सुजान।।

कितने महँगे हो गए,अभी वफा के दाम।
करते आज फरेब जो ,बना लिया यह काम।।

कितने महँगे हो गए,लोगों में अब प्रीत।
अंदर ही अंदर जले,और बने वह मीत।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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