जुगनू के जैसा हम होते तो कैसा होता दिन में जागते रात में चमकते न अँधेरे का डर न खौफ होता जाहा पाते जाते न किसी का भैये न कोई रोकने बाला नहीं बात बात में हर बात में टोकने बाला बस रात होती कही घन घोर अँधेरा कही ओस में लिपटा रात तो धुंध में सराबोर तो कही अंधकार का सीना चीरता बे फ़िक्र नीडर सेवेरा मैं जुगनू होता तो क्या बात होता न कमाने की चिंता न घरबालों का डाट न पत्नी लड़ती झगड़ती बस अपना पूरा धरती सारा आश्मान होता