संदीप कुमार सिंह 16 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4621 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) सारी सीमा तोड़कर, खुद पर है विश्वाश। हरदम जीवन जंग है,होने मत दूं नाश।। सारी सीमा तोड़कर,करना है नव काम। जिसमें भला समाज का, होगा अपना नाम।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....