आकाश अगम 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग #नक्कू #kahani #story #hasyavyangya #Akashagam #आकाशअगम 24714 1 5 Hindi :: हिंदी
चैप्टर - 1 उनका जन्म 2 अक्टूबर को हुआ था संभवतः इसीलिए वे स्वच्छता अभियान से अत्यधिक प्रभावित थे । सौभाग्य से वे जहाँ निवास करते थे उस सम्पूर्ण क्षेत्र में स्वच्छता का ही बोलबाला था। किंतु ये उन्हें सौभाग्य न्यूनतम और और दुर्भाग्य अधिकतम जान पड़ता था। चूँकि वे सफ़ाई करना चाहते थे किंतु क्षेत्र का पूर्व स्वच्छ होना उनकी इस इच्छा की सिद्धि करने में कण्टक बन बैठा था। वे चाहते थे कि यह क्षेत्र गंदा होता, तो वे लोगों को इसे स्वच्छ रखने के लिए उपदेशित करते। और उनकी गणना एक क्रांतिकारी के रूप में हो जाती। वे अपने आप को देश के प्रति अत्यधिक गंभीर , स्वच्छता प्रिय व्यक्ति , राष्ट्रप्रेम से भरे पुष्प और त्यागयुक्त बुद्धिमान पुरुष सिद्ध करना चाहते थे। बचपन में ही उनके विशालकाय कर्णों को यह बात श्रुति हो गयी कि मनुष्य को बाहर नहीं अपितु अपने भीतर गंदगी तलाशनी चाहिए। उन्होंने इस स्टेटमेंट पर अपना पूरा ध्यान केन्दित किया और इसका अर्थ गहराई से समझा तथा उस पर अमल करते हुए अपने शरीर पर तहकीकात शुरू कर दी । इस इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि उनका सम्पूर्ण अंक स्वच्छ है मात्र दो गुफाओं को छोड़ कर। वे अब शर्मिन्दगी से गढ़ गए थे क्योंकि वे इस राष्ट्र को स्वच्छ करने में अपनी जान पेले थे किंतु अस्वच्छता तो उन्हीं के तन में घर कर गयी। लेकिन फिर उन्होंने अपने आप को संभाला क्योंकि देश भक्त अपना समय रोने धोने में नहीं कार्य करने में ख़र्च करते हैं। अतः उन्होंने अबिलम्ब दोनों गुफाओं अर्थात नासिका पर स्वच्छता अभियान लागू किया। इस कार्यसिद्धि के लिए जब साधन की आवश्यकता हुई तो उन्होंने अपने हाथों की उँगलियों को यह सुअवसर प्रदान किया। उनकी उँगली इस विशाल वायुमंडल में तैरती हवाओं से बातें करती हुई नासिका गुहा में प्रवेश करती और वहाँ उपस्थित समस्त रानियों तथा राजाओं को सःसम्मान एक क्षण में उठाकर धरती पर तो कभी दीवार पर पटक देती। वे अथक परिश्रमी थे सो अपने इस कार्य को 24 ×7 तक बहुत ही लगन तथा प्रेम से करते। वे निद्रा में भी इस कार्य को कर लिया करते थे क्योंकि वे देश भक्त थे। उनका प्रमुख नाम तो राम जानें किन्तु उनकी इस प्रतिभा , लगन , परिश्रम तथा इस अलौकिक कार्य को देख कर सब लोग उन्हें नक्कू कह कर संबोधित करते थे। एक दिन नक्कू अपने परम प्रिय कार्य को करते हुए एक बगीचे में टहल रहे थे । सभी राजाओं को आदरसहित बेघर करने के पश्चात , एक अंतिम राजा गुफ़ा में शेष था। नक्कू ने उस राजा को भी पकड़ कर पीछे की ओर धरती पर फेंका किन्तु 'होनी है बालबाल' वह पीछे आते हुए एक भाई साहब के नाक के ऊपर जा बैठा। भाई साहब चिल्ला कर बोले- अबे अंधा है क्या ? दिखाई नहीं देता या जान बूझ कर लोगों पर कीचड़ फेंकता है । बेशरम कहीं का। नक्कू पीछे मुड़े और भाई साहब के पास आकर धीरे से बोले- देखिए भाई साहब , मोदी जी ने कहा है कि अपनेआप को स्वच्छ रखो , हिंदुस्तान स्वयं स्वच्छ हो जायेगा। तो.... भाई साहब बीच में ही काटते हुए बोले- अबे स्वच्छता गयी मोदी जी के साथ हनीमून मनाने। ये शरीर क्या तेरे बाप का है जो अपना हलुआ मुझ पर फेंक दिया। अब नक्कू के सब्र का बाँध टूट पड़ा और दाँत पीसते हुए बोले- साले चड्डीछाप जाहिल आदमी। तेरे जैसों के कारण ही देश अपनी सेटिंग से दूर है.... भाई साहब ने बात काटते हुए बीच में ही बेहद आश्चर्य से पूँछा- देश की सेटिंग कौन है ? अब तो नक्कू भाई साहब पर चढ़ बैठे- साले अधर्मी , अत्याचारी , बेबकूफ़ कुत्ते देश की सेटिंग स्वच्छता है, स्वच्छता। पर तुझे क्या ? तेरी सेटिंग तो गयी नहीं कहीं। तू क्या जाने कि जुदाई क्या होती। लेकिन मुझे दिखता है कि देश कैसे दिन रात रोता है उसकी याद में। और क्या कर रहा था कि हलुआ फेंक दिया तुझ पर। अबे उल्लू के गधे के पट्ठे , ये गुण है गुण बेबकूफ़। न जाने कहाँ से पैदा हो गये कामचोर , आलसी साले। पता नहीं हगने के बाद सौंचता भी होगा या उसमें भी आलस। तुम जैसों के कारण ही हमारा देश रूपी रॉकेट हर बार फुस से पाद कर रह जाता है साले। मोदी जी ने साफ साफ कहा कि सिर्फ़ स्वयं को साफ रखो सो हमने अपने नकुआ को निकरि कै फेंक दओ। अब बू तुम्हाये ऊपर चिपक गओ तौ तुमाई जिम्मेवारी। और फिर अपनी सीधे हाथ की तर्जनी को भाई साहब की नाक की सीध पर लाकर चेतावनी देते हुए बोले- जे देश तिहाये बाप को नाहीं है कि जो जी में आवै , करोगे। तासों चुपचाप नाक में उँगरिया डाल लेउ लला नाहीं तो अबै लौ हमने सफाई ही करी है। तुम्हें साफ करिबे में जादा टेम न लगिहै। उन भाई साहब की स्थिति क्या बन चुकी थी , ये बता कर मैं आपका दिल नहीं दुखाऊँगा। नक्कू गुस्से से भरे घर जा रहे थे किंतु घर तक पहुँचते पहुँचते वह क्रोध हर्ष में परिवर्तित हो गया क्योंकि अब अपने शत्रु से लड़ने के लिए उन्हें एक अमोघ अस्त्र मिल चुका था। जब ताक़त से पेश नहीं जाती थी , तो नक्कू अपनी नासिका में उपस्थित अमृत समान द्रव्य को प्रतिद्वंद्वी के होंठों पर गिरा देते थे जो उसके लिए कालकूट विष साबित होता। पूरे क्षेत्र में नक्कू का खौफ़ था और उनकी विजय पताका इस मुक्त गगन में निर्विघ्न फहरा रही थी। उनकी प्रसिद्धि दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ रही थी किन्तु अचानक एक दिन नक्कू को समझ आया कि वे गलत ट्रैक पर अग्रसर हैं। क्योंकि उनके इन कृत्यों से राष्ट्र स्वच्छ नहीं अपितु अस्वच्छ हो रहा था। उन्होंने सोचा कि इस पदार्थ को डस्टबिन में डालना उचित होगा। किन्तु उनके सम्मुख एक नई समस्या उत्पन्न हो गयी और वह यह कि हर स्थान पर डस्टबिन उपलब्ध नहीं। किन्तु कुशाग्रबुद्धि वाले नक्कू ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। वे समझ गए कि अमृत फेंका नहीं जाता पिया जाता है। इसलिए वे उस अमृत समान द्रव्य को ग्रहण करने लगे। चैप्टर - 2 नक्कू पुनः उसी बगीचे में जाकर टहलने लगे , जहाँ उन अपरिचित भाईसाहब ने अप्रत्यक्ष रूप से नक्कू का मार्गदर्शन किया था। एकाएक उनकी दृष्टि सुनील जो कि एक बेहतरीन अभिनेता हैं और मुझ पर पड़ी। सुनील और मैं प्राकृतिक संपदा यथा वृक्ष , पुष्पों की सुगंध और झरनों का आनन्द लेने हेतु उस वाटिका में कुछ समय व्यतीत कर रहे थे। चूँकि सुनील एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय अभिनेता थे इसलिए लोगों का एकत्रित हो जाना स्वाभाविक था। तथा ऑटोग्राफ माँगना भी आश्चर्यजनक नहीं था। सुनील को ऑटोग्राफ देते और धन्यवाद प्रेषित करते अभी कुछ ही समय हुआ था कि तभी एक व्यक्ति विशाल उदर लिए , अपनी विशालकाय मूँछों पर ताव देते हुए आये और एक युवक की शर्ट का कॉर्लर पकड़ कर बोले- क्यों रे ! कौन है ये ? भगवान है ? ख़ुदा है ? कौन , है कौन ये ? क्यों तलवे चाट रहे हो इसके। साले हरामखोरों, इतनी पूजा उन सैनिकों की नहीं करते जो तुम सब के लिए अपनी जान हँथेली पर रखकर दुश्मन से भिड़ जाता है। उनसे तो कभी ऑटोग्राफ लेने न गए । अरे तुम जैसे मौकापरस्त लोगों को तो विदेशी गीदड़ों के झुंड में फेंक देना चाहिए। वो ( सैनिक ) हमारे लिए अपने घर वालों को अकेला छोड़ गया, उसके बच्चे पिता का दुलार नहीं पा रहे , त्यौहार पर अपने घर नहीं जाता ताकि तुम सब त्यौहार मना सको। लेकिन तुम हरामखोरों को क्या पड़ी है ? बस इन नचकईयों के तलवे चाटो साले। सुनील के कर्ण जब इस रेडियो की गूँज को सहन कर पाने में असमर्थ हो गए , तो वह धीरे से आगे आये और बोले- देखिए दादा, आप हद पार कर रहे हैं। सुनील के ये शब्द दादा के हृदय को चीर गए और वे गुर्रा कर उन पर (सुनील पर ) झपट पड़े- अच्छा , तो अब तू सिखाएगा साले। तू सिखाएगा कि कितना बोला जाए। औकात में रह औकात में। साला मैं इन सब जैसा उल्लू नहीं हूँ कि तू छम्मकछल्लो ज्यों कमर हिला दे और मैं तेरी कन्नद्धनी बन जाऊँ। तुझ जैसों के कारण आज पिद्दी पिद्दी से बच्चे किशन कन्हैया बन कर घूम रहे हैं। और तुझे क्या जानता नहीं हूँ मैं ? चरित्रहीन आदमी। 'विलेन' फ़िल्म में तूने अनुष्का नाम की लड़की को किस किया, 'हॉबी' फ़िल्म में प्रियंका के साथ सोया , 'मिलन' फ़िल्म में प्रिया के साथ शादी की और बच्चे पैदा किये 'वंश' फ़िल्म में दया के साथ । तुम जैसों की वज़ह से हर लड़का छत्तीस फँसा कर घूमता है , नज़र में फ़र्क आ गया साले , कमीने, कैरेक्टरलेस , लोफर। तुम्हारी फिल्में नहीं देखेंगे , तो क्या रोटी नहीं पचेगी। पर देश में गौदुअन की कमी कहाँ है। और तुम साले करते ही क्या हो इस देश के लिए ? सो बताओ ? कितनी जंग लड़ीं हैं , कितनों को मार लिया ? बस मुँह से ठांय ठांय करने के अलावा आता है कुछ तुम्हें ? साले तुम तो जीरो हो । हीरो तो वो सैनिक है , जो देश के लिए लड़ता है। उसकी बन्दूक अगर कँधा पै धर दई जाय , तो पैं हुइ जै तुम्हायी। कोई छोकरिया नाहीं है कि बाय उठाय ठुमका लगाय लेउ । आये बड़े पहलवान। मुझसे सुनील का इतना अपमान बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए मैंने दादा के कन्धे पर हाथ रख कर कहा - किसी ने क्या ख़ूब कहा है कि "आज पूरा देश पूरे लाम पर है जो जहाँ पर है, वतन के काम पर है।" वे मेरे हाथ को सम्पूर्ण शक्ति से झटकते हुए मुझ पर गरज उठे- साले कवी, हाऊ डेयर यू टच मी ? यू डोंट नो दैट व्हाट आयम एंड व्हाट कैन आई डू। यू डोंट डिज़र्व टू टॉक विथ मी हिंदी पोएट। औ हमते जादा लाम लाम करी तो लगाम बनाय कै ऐसो टेंटुआ दबैएँ कि राम राम हुइ जैहै। फिरि बहे लगाम तुमाई नाक में डारि कै हम खलबलाय दियें , अचानक नक्कू ने पीछे से आकर कहा। -नाक में तै लपसी चुइ रही , बने फित्त देशभक्त। कबहूँ उँगरिया डारि कै साफ़ करिबे की कोशिश करी ?
1 year ago