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देश को बचा लो

Saurabh Sonkar 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम नारे लगाते हो खूब तुम हो तलवार तुम निकालते, धर्मो रक्षति रक्षित: नदियाँ बहाते खून की, कत्ल करते हो मानुजता की खुद को वीर हो पुकारते, 7535 0 Hindi :: हिंदी

नारे लगाते हो खूब तुम हो तलवार तुम निकालते,
धर्मो रक्षति रक्षित: नदियाँ बहाते खून की,
कत्ल करते हो मानुजता की खुद को वीर हो पुकारते,
धर्म देख - देखकर गर्दन हो तुम उतारते ,
शायद बड़े हों इंशानियत से भी ये धर्म तुम्हारे ,
अंग्रेज था ढ़ह गया वाटर की चाह में ,
हिन्दी था बह गया पानी की थाह में ,
वाटर - पानी एक ही है कहने वाला,
अधर्मी है ,कौम का गद्दार है ,नामर्द है ,
जो पिस और जल गया साम्प्रदायिकता की आग में ,
धर्म ही लोगों को बाँटता है ये रजनीश था जो कह गया ,
वो सच कहने की ही सजा थी जो देश छोडना पडा ,

अपनी आस्था के राजनीतिकरण के,
तुम खुद ही जिम्मेदार हो ,
नफ़रत तुम्हारे दिलो में है,
तुम खुद ही खुद को धार्मिक कहो,
जाहिलो की फौज़ से नेताओं की मौज हैं,
देश के स्वास्थ को किसको यहाँ चिन्ता पडी,
हाथों में कटार लिए कत्ल में मशगूल हैं,
ये धार्मिक हैं साहब धर्म के नशे में चूर हैं,
वेश में आवेश में उत्तेजना के जोश में ,
इनसे मत उलझिये ये सब नही हैं होश में,

शतरंज की विशात को राजनीति की इस चाल को,
कौन है समझा यहाँ कौन है बागी यहाँ ,
ये भूल है तुम्हारी तुम शिकारी नही हो साहब, 
शिकार हो राजनीति का उसी की तुम जकड में हो,
तुम बेवजह बहम में हो धौंस में अकड में हो,
वो काम ऐसा सिर जो नीचा झुकाये देश का,
वो काम ऐसा जो देश की अखण्डता पे आँच आये ,
फिर ये झूठी है राष्ट्रवादिता झूठा है राष्ट्रवाद ये,
जल रहा है देश साम्प्रदायिकता की आग में,
कैसी है देश भक्ती कैसा है राष्ट्रवाद ये ,

किसी के पूर्वज हिन्दू किसी के पूर्वज बौध्द
इन सबके पूर्वज बंदर ये कौन से सिद्धान्त में,
बेमतलब बेवजह की इस बहस और विवाद में,
जल रहा देश आज साम्प्रदायिकता की आग में,
ये आग जो लगी है न धर्म जाति देखेगी ,
आयेंगे घर कई जद में भारत माँ खुले आम जलेगी,
काम ऐसा तुम करो सौरभ हो चारो ओर ,
दब जाये उसके नीचे ये नफरतों का शोर ,
ये धार्मिक विवाद को ये नफ़रतो की आग को,
तुम बैठ कर सुलझा लो इस देश को बचा लो ।
🇳🇪 🇳🇪 सौरभ सोनकर 🇳🇪 🇳🇪

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