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दरकार

Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #दरकार 86933 0 Hindi :: हिंदी

कविता = ( दरकार )

निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
खाली ख़ज़ाना नहीं चलती सरकार !
भूखे पेट भजन कैसे होए मेरे यार !!
सब कुछ बिकता है यहाँ !
यह दुनिया है एक बाज़ार !!
खाली जेब यहाँ कुछ ना मिलता  !
बिन पैसे रिश्ते भी हैं। यहॉं बेकार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!

पेट भरा जग हरा !
हुआ चाँद का दीदार !! 
कहीं सेवा के नाम पर !
बोटियों के तलबगार !!
कहीं भूख से बिलखता बच्चा !
कहीं रोटियों का अंबार !!
सेवा के नाम पर सजा बाज़ार !
सच बोला मैं ग़द्दार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! 
पेट को रोटियों की है दरकार !!

वाह रे मेरी दिल्ली सरकार ! 
सबको दे दिया रोज़गार !!
दिल्ली नागरिक सुरक्षा भर्तियों की भरमार !
अब न है कोई बेकार !!
एक रोटी टुकड़े हज़ार !
छिन - छानकर खालो यार !!
यह है आपकी सरकार !
टुकड़े फेंको बेड़ा पार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!

कोरोना योद्धा का मिला सम्मान!
कोरोना काल में लगा दी जान !!
कोरोना को दिया पछाड़ !
कोरोना से न मानी हार !!
निष्काम सेवा करी अपार !
अब रोड पर है परिवार !!
कोरोना योद्धा बेरोज़गारी से रहें हैं हार !
अब कब जागेगी सरकार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!

( विपिन बंसल )

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