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चींटी की ख्वाहिश

Anany shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक चींटी हो गई इंसान 95885 0 Hindi :: हिंदी

थक हार कर पेड़ के नीचे,
बैठ गई एक चींटी
सोचने लगी, 
काश मैं भी होती इंसान
मशीनें करती मेंरा सारा काम
सोचते ही वह चींटी हो गई इंसान
अपनों के बीच बन गई मेहमान
 देखा उसने
 इंसान तो इंसान के पीछे ही पड़ा है
 जहां नहीं होना चाहिए था खड़ा, वहीं खड़ा है
 गलती करके स्वयं
  दोष दूसरों पर मढ़ देता है
 खुद करता नहीं काम
 दूसरों को आलसी कह देता है
 स्वार्थ की आधी में अब हो गया भावना से हीन
 जो नहीं है उसके पास वह दूसरों से लेता है छीन
 गिरा लिया स्तर अपना उसने
 करता सारे गंदे काम
 नहीं चाहिए अब मुझे, ऐसा ये आराम
 दे दो मुझे प्रभु अब, पुराना ही मेरा नाम

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