Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य प्रेमी -प्रेमिका से बिझड़ जाता है तो चाँदनी रात मेंं प्रेमी उसकी याद मेंं सो नहीं पाता ,उसी रात का मर्मिक चित्रण है 17495 0 Hindi :: हिंदी
सायंकाल का प्रहर - जिसे देती विदाई कोई ; सुरबाला सी नारी - पहन के सफेद साड़ी , विदाई दे रही है - सज - धज कर ; लेता विदाई दिनकर - नींद की तैयारी में - सजाकर उस का बिस्तर , हो रही चाँदनी की यौन विस्तार । आई प्रदोष प्रहर - सुरबाला नारी ; बैठी सज - धजकर - पहनी सफेद साड़ी , फैलाती रुप की ज्योति - करती रुप में सृष्टि को लिप्त , आ रही चाँदनी परी - संग में चमकीला रंग मेंं तारा एक ; अभिनन्दन मेंं उस की - नभ को सजाती तारें अनेक ; करती रात रानी की अभिषेक । फैलाती ज्योति चाँदनी रात ; वह करती सृष्टि को शत् रात् , हँस - हँस कर करती रानी का गुनगान ; चारु चाँद की चंचल आँचल , खुली चमकीला नील गगन - मृदु - मृदु चाँद की चंचल किरण ; मीठी - मीठी बहती ठंडी पवन - गढ़ेंं मुर्दो को ना जगाओं - उर में यादों की अनल ना लगाओं , कहें दो ! उसे ना आऐ लौटके ; चूर - चूर हो के बिखर गया ! टूट के , हे यादें ! रहो हम से दूर - रोने के लिए मत करो मजबूर ; उर टूट के हुआ चूर - चूर । निशिथ प्रहर का होता आगमन ; निराश ! रोता पुहुपन , यादों की बारात में ; चाँदनी रात में - ना खेलों ! ऐसा खेल रात मेंं , चाँदनी तुझे किस कारण है इतनी अभिमान ? सुन रे बेईमान - ले के ही छोड़ेगी ! मेरा प्राण ; आँख मिचौली खेल मेंं - किरण - छाँय की मेल मेंं ; छुपके -चुपके चला रही बाण ; निकल जाएगा प्राण , मर ही जाऊँगा इस बार - मुझ पे हुआ ऐसा वार ; नासूर बना घाँव - यादों की ज़न्जीरों से बन्धा पाँव , काँँटों से सजा अपना बिस्तर - करुँँ कहानी का विस्तार - अत्रुनीर से भीगा बिस्तर , रिमझिम - रिमझिम बरसे आग - सृष्टि को जलाती विरहाग ; जल - थल - नल को समेटा - चारु चाँद की चंचल आँचल में सब को गठा , शांंत सागर की उर में उठी तरंगाघात - गूँज रही दसों दिशाओं में गुफ्तबात ; मर्मर में छिपी है कोई अनुराग ; सृष्टि आज जल जाएगा -. हो जाएगा राक , दिवस में देखा हँसती बाग को - देख रहा हूँ ! जलती विरहाग्नि में बाग को ; कोई तो बुझाओं - इस आग को ; कितना प्रफुल्लित था सुमन - जीवन चल रहा था एक प्रेम दिशा में ; सब कुछ जल रहा - चाँद की चारु चंचल किरण वाली निशा में । आ गया त्रिमाया प्रहर - रुक -रुक के नदी - नद में उठ रही है लहर ; सुरसरिता में बसा एक भूखा - प्यासा मकर - जल में ना मिला जल ; ना मिला आहार , मर जाएगा भूख - प्यास से तड़प - तड़पकर ; जैसे कोई तड़पा ! प्रेमी - प्रेमिका से बिछड़कर ! जल ! जली विरहाग में - गाता गीत विरह राग में ; सृष्टि जलती पूरा विरहाग में , जुगनू जलती ! जलाती टिम - टिमकर ; लाती खुशबू ऐसी ! रे पवन - बोलती अव्यक्त प्रेम संदेश ; हे प्रिय ! तुम कहाँ हो - तुम्हारा है कौन सा देश ? व्याकुल हुआ मेरा मन - इस जीवन की इतनी सी है अभिलाषा ; मैं कर लूँ ! प्रिय की दर्शन । उषा प्रहर का आगमन - किसे ! क्यों खोजता मेरा मन ? झम - झम करती कोई दूर से - प्रिय की नुपूरों की सुर से ; मुझे बुलाती विरह सुर से , होकर व्याकुल स्निग्धज्योत्सना रात में ; मैं खोजता रहा धुँधली रात में - घायल मंजनू की तरह - हे प्रिय ! इस सृष्टि में अकेला हूँ , छोड़ कर ना जाओंं दूर - उर को ना करो चूर - चूर ! कोई तो बताओं - कहाँ बज रही है नुपूर - बढ़ता - बढ़ाता ! मन का अनुराग ; चाँद की चंचल किरण वाली रात में - उर में लगा प्रेमाग , ना मिला उसे ! सिर्फ मिली प्रेमाभाष ; खो रहा धैर्य ; कर ना मुझे विवश - मन में जल रहा है आग - अत्रु से बुझाया आग को ! बचा लिया अपने बाग को - अत्रुनीर सिंचकर खिलाया - इस जीवन में - कवि ने अपने कविता की बाग को । रतन किर्तनीया छत्तीसगढ़ जिला :- काँकेर पखांजुर मो * 9343698231 9343600585