Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बिटिया (बेटी) 20979 0 Hindi :: हिंदी
ये प्यारी, नन्ही परी। घर-गुलिस्तां की, बिटिया खिलती कली। सूना संसार, देश, हर आंगन गली। प्यारी गुड़िया चंचला, मिश्री-सी डली। सहन-तितली, यहां-वहां उड़ चली। कैसे महकेगी मुकुल, जो डाल झरी। ये प्यारी, नन्ही परी। जन्म जाती हैं बेटियां, बेटों की चाह में। वरना ज़िंदा दफ़न हो जाती हैं, मां के गर्भगाह में। जलेगा दामन धरती का, इस आह के दाह में। डूबेगी दुनिया, इस पाप-घड़े की थाह में। गर्दिशे-ज़माने की लपट से, बेटी कोख मरी। ये प्यारी, नन्ही परी। दो घरों के रिश्तों को, प्रेम-डोर से बुनती है। कौन सुनता है बुढ़ापे में, बेटी ही तो सुनती है। पिता के मोजे ढीले हुए क्यों, बेटी ही तो समझती है। श्री राम के लिए सीता, त्रिदेवों की अनसुईया सती है। श्रद्धा-भाव से, बेर खिलाती है शबरी। ये प्यारी नन्ही परी। ये प्यारी, नन्ही परी।