Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक बिकाऊ 20014 0 Hindi :: हिंदी
ले जा बाबू ले जा, ले जा चाचा ताऊ। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ। यदि जुलूस निकलता है, तो भीड़ बिकती है। जनाज़े में, रोने वालों की भी फबती है। किसे कैसा, कितना रोना, वैसी ही क़ीमत लगती है। सभा हेतु, किराये के समर्थकों की ज़रूरत पड़ती है। ज्ञान भी बिकता, बिकता केतु राहु। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ। ईमान बिकता, धर्म बिकता और बिकती ज़बान। दिल और दिमाग़ भी बिकता, बिकता हर इंसान। जीने की चाह सबमें होती, पर बिकती है जान। उसूल और रसूल बिकते, मान चाहे मत मान। नीति-अनीति, होनी-अनहोनी, सब भाव कमाऊ। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ। वोट बिकता, कुर्सी बिकती, हो जेब में ताक़त। कानून भी बिकता है, निराश हो मत। गवाह, ज़मानती सब बिकते, असली की कहां ज़रूरत। बाज़ार चीज़ आने से पहले, खरीदने की कर लेते जुगत। राजा बिकता, रंक बिकता, बिकता दुर्जन साहू। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ। आज बिकता, भविष्य बिकता, बिकता काल गत। मूठ बिकती, झूठ बिकता, बिकती हक़ीकत। खरीदने वाला भी बिकता है, देने वाला हो क़ीमत। बिना मूल्य के बिक जाते, खरीदने की हो जुगत। धरती, चांद, सूर्य भी, नहीं टिकाऊ। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ। ले जा बाबू ले जा, ले जा चाचा ताऊ। यह दुनिया बाज़ार, यहां हर चीज़ बिकाऊ।