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भविष्यदर्शी

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक भविष्यदर्शी (भविष्यद्रष्टा) 19171 0 Hindi :: हिंदी

गड्ढा खोदूँगा पर राहों में, खुद को मिलेगी खाई।
काँटे बोउँगा औरों के तई, मिलेगी कंटक शय्या बिछाई।
आम नहीं पाउँगा, जो आक करूँगा बुआई।
जैसा करूँगा वैसा भरूँगा, नहीं चले पंडिताई।
मैं कल की सच्चाई को, आज की छलनी से छानता हूँ।
साहब, मैं मेरा भविष्य जानता हूँ।
औलाद बिगड़ी, सब कुछ बिगड़ जाएगा।
खुद की आदत नहीं सुधरी, बुढ़ापा दुख हत्थे चढ़ जाएगा।
कितना ही कर लूँ, किया- कराया वक़्त में जकड़ जाएगा।
वक़्त का वक़्त नहीं जानूँगा, तो वक़्त भी अकड़ जाएगा।
मैं भविष्य के भविष्य को, वर्तमान से नापता हूँ।
साहब, मैं मेरा भविष्य जानता हूँ।
नया न कुछ कर पाया, तो वैसा ही रहूँगा जैसा हूँ आज।
कोई याद नहीं करेगा, जब डूब जाएगा जीवन जहाज।
जैसा हूँ का मैं ही ज़िम्मेदार, न ही परिस्थिति न ही समाज।
सब कुछ होते हुए भी, सुख की ज़मानत पर गिर सकती है गाज़।
मैं वर्तमान की सान पर, भविष्य को सानता हूँ।
साहब, मैं मेरा भविष्य जानता हूँ।
साहब, मैं मेरा भविष्य जानता हूँ।

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