Manisha 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मन की आवाज़, जिस्म के भुखे, बुरी नज़र,लॉन्गों की नज़र 6782 0 Hindi :: हिंदी
बेटी अपनी मां से कहती है.... ये दिखवा क्यूं मां मेरे साथ माँ? मुझे घर की लक्ष्मी कहते हैं, देवी कहते हैं ना जाने क्या-क्या कहते हैं फिर मुझे चार दिवानरो में केदी क्यों मां ??घर से निकलते वक्त मुझे डर लगता है मां की कहीं कोई जांवर आकार मुझे नोच न डाले मां फिर ये दिखवा क्यों मां जब रक्षाबंधन आता है रक्षा की पुकार लगता है फिर क्यों कोई भाई भाक्षक बंजाता है?जब बाहर से आने में मुझे देरी हो जाती है मां, तब पिताजी के चेहरे पर उदासी वा चिंता दिख रही है मां? फिर ये दिखवा क्यूं माँ?बेटी को कुदरत का ऊपर कहते फिर इस उपहार के साथ छेदखानी क्यों होती मां?फिर ये दिखवा क्यूं मां जब मैं घर से निकलती मां तुम्हें मेरी चिंता होती है हमशा मां, की कान्ही मेरा भी हाल निर्भया, दिशा, या मालती जैसा मां हो जाए मां ये सोचकर आप घबड़ाती हो मां?फिर ये दिखवा क्यूं माँ ??इंसान के रूप में जो इंसानियत का नाकाम पहनने हुए दिखलाई देता मां, इस नाकाम से डर लगता है मां? फिर मेरे साथ दिखवा क्यूं मां?
Mujhe kavitayein likhna bahut acha lagta hai or padhna bhi bahut acha lagta hai...